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________________ उदाहरण-भयात १६।३९ और भभोग ५८०४४ है। १६।३९ ९६०+३९= ९९९ पलात्मक भयात ५८०४४ ३४८०+४४ = ३५२४ पलात्मक भभोग ९९९४ ६० = १९९४० : ३५२४ = १७१०।३२ अर्थात् १७ घटी • पल ३२ विपल लब्धि हुई । यहाँ जन्मनक्षत्र कृत्तिका है, अतः उसके पहले का नक्षत्र भरणी हुआ। अश्विनी से गणना करने पर भरणी तक दो संख्या हुई अतः २x६० = १२० । ( १२० ) + ( १७।०।३२ ) = १३७।०।३२ इसे २ से गुणा किया१३७।०।३२४ ३२ = २७४।१।४ २७४|११४९ = ३०।२६।४७ अंशात्मक लब्धि हुई अतः अंशों में ३० का भाग दिया तो ११०।२६।४७ राश्यादि चन्द्रस्पष्ट हुआ। चन्द्रगतिसाधन २८८०००० में पलात्मक भभोग से भाग देने पर लब्ध चन्द्रमा की गति की कलाएँ आयेंगी; शेष में ६० का गुणा कर पलात्मक भभोग का भाग देने पर लब्ध गति की विकलाएँ आवेंगी। उदाहरण-पलात्मक भभोग ३५२४ है २८८००००:३५२४%3८१७ लब्धि, शेष ८९२x६० = ५३५२०३५२४ = १५ लब्धि, शे. ५६०, अतएव चन्द्रस्पष्ट गति ८१७।१५ हुई। चन्द्रसारणी द्वारा चन्द्रस्पष्ट करने की विधि जिस नक्षत्र का जन्म हो उसके पहले के नक्षत्र के नीचे की राश्यादि अंक संख्या 'सत्ताईस नक्षत्रोपरि स्पष्ट राश्यादि चन्द्रसारणी' में देखकर लिख लेना चाहिए । पश्चात् भयात की घटियों की राश्यादि अंकसंख्या को 'भयात गतघटी पर चन्द्रसारणी' में देखकर लिख लेना चाहिए। अनन्तर आगेवाले कोष्ठक के साथ अन्तर कर अनुपात से पलों का फल निकालना चाहिए अथवा अन्तर को पलों से गुणा कर ६० का भाग देने से ___ भयात घटी-पल को साठ से गुणा करके भभोग के पलों से भाग देने पर जो अंक मिलें, उन घटी-पल-विपलात्मक तीन अंकों को स्पष्ट भयात जानना चाहिए। अनन्तर तीन अंकों को साठ से गुणे हुए अश्विनी आदि गतनक्षत्र संख्या में जोड़कर दूना करे। पश्चात् नौ से भाग देकर अंश, कला और विकला रूप फल आता है। अंशों में तीस का भाग देने से राशि आती है। इस प्रकार राश्यंशादि रूप चन्द्रमा होता है। द्वितीयाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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