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वाराधिपति से क्रमशः की जाती है। जैसे मंगलवार के दिन गुलिक बनाना हो तो १ले खण्ड का अधिपति मंगल, २रे का बुध, ३रे का बृहस्पति, ४थे का शुक्र, ५वें का शनि, ६ठे का रवि और ७ का चन्द्रमा होगा। ८वें खण्ड का कोई अधिपति नहीं होता है । इस दिन शनि का ५वा खण्ड है, अतः ५वा गुलिक कहलायेगा।
रात में जन्म होने पर रात्रिमान के समान ८ भागों में से प्रथम भाग-खण्ड का वाराधिपति से पंचमग्रह अधिपति होता है। इसी प्रकार क्रमशः आगे गणना करने पर जिस खण्ड का अधिपति शनि होगा, वही गुलिक कहलायेगा । जैसे-सोमवार की रात्रि को गुलिक जानने के लिए रात्रिमान में ८ का भाग देकर पृथक्-पृथक् खण्ड निकाल लिये । यहाँ प्रथम खण्ड का स्वामी चन्द्रमा से पंचम ग्रह शुक्र होगा। द्वितीय खण्ड का शनि, तृतीय का रवि, चतुर्थ का चन्द्रमा, पंचम का मंगल, षष्ठ का बुध और सप्तम का बृहस्पति होगा। यहाँ सुविधा के लिए नीचे गुलिक-चक्र दिया जाता है जिससे प्रतिदिन के दिवाखण्ड और रात्रिखण्ड के गुलिक का बिना गणना किये ज्ञान हो सके ।
गुलिक-ज्ञापक चक्र रवि सोम मंगल बुध | गुरु | शुक्र शनि |
वार ७ | ६ | ५ | ४ ३ | २ १ दिन के इष्टकाल में
गुलिक खण्ड ___३ | २ | १ | ७/६/५/ ४ रात्रि के इष्टकाल में
....गुलिक खण्ड ___ गुलिक इष्ट बनाने की प्रक्रिया यह है कि जिस दिन का गुलिक बनाना हो उस दिन, दिन का जन्म होने पर दिनमान में और रात का जन्म होने पर रात्रिमान में ८ का भाग देने से जो लब्ध आवे, उसमें गुलिक-ज्ञापक चक्र में लिखित उस दिन के अंक से गुणा कर देने पर इष्टकाल हो जाता है। इस गुलिक इष्टकाल पर से लग्न-साधन की प्रक्रिया के अनुसार लग्न बनाना चाहिए, यही गणितागत गुलिक लग्न होगा।
उदाहरण-वि. सं. २००१ वैशाख शुक्ल द्वितीया सोमवार को दिन के २-४५ मिनट पर जन्म हुआ है । इस दिन का गुलिक इष्टकाल
___सोमवार के दिनमान ३२ घटी ६ पल में ८ का भाग दिया-३२।६८= ४।०।४५ एक खण्ड का मान हुआ। इसे गुलिक-ज्ञापक चक्र में अंकित सोमवार की अंक संख्या ६ से गुणा किया
४।०।४५ x ६= २४।४।३० गुलिक इष्टकाल हुआ। लग्न बनाने के लिए सोमवार के सूर्य के राश्यंश ( ०।१० ) लग्न-सारणी में देखे तो ४।७।४२ फल मिला । २४।४।३० इष्टकाल में
४७।४२ प्राप्त फल को जोड़ा २८।१२।१२ इसे पुनः लग्न-सारणी में देखा तो ४।२७ लग्न आया। अर्थात् सिंह राशि द्वितीयाध्याय
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