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________________ यदि गणितागत लग्न के अंश और प्राणपद के अंश बराबर हों तो लग्न को शुद्ध समझना चाहिए। अंशों में अतुल्यता होने पर इष्टकाल को संशोधित करनाकुछ पल घटाना या बढ़ाना चाहिए लेकिन यह संशोधन भी इस प्रकार का हो जिससे लग्नांशों में न्यूनता न आये। उदाहरण-इष्टकाल २३ घटी २२ पल है और सूर्य ०।१० है। २३।२२ इष्टकाल के पल बनाये१३८० + २२ - १४०२ पलात्मक इष्टकाल १४०२:१५-९३ लब्धि ७ शेष । शेष को दो से गुणा किया तो ७४२=१४ हुआ । ९३ : १२ = ७ लब्धि ९ शेष आया। यहां लब्धि का त्याग कर दिया तो गणितागत मध्यम प्राणपद ९ राशि १४ अंश हुआ। सूर्य मेष राशि के १० अंश पर है। मेष राशि चर है, अतः सूर्य के राशि-अंशों में ही आगत प्राणपद को जोड़ा। ०१० सूर्य के राशि अंश में ९।१४ प्राणपद को जोड़ा तो९।२४ स्पष्ट प्राणपद हुआ। पहले इसी इष्टकाल का लग्नांश २३ आया है और प्राणपद का अंश २४ है । ये दोनों अंशात्मक मान मिलते नहीं है अतः इष्टकाल को कुछ कम या अधिक करना चाहिए जिससे लग्नांश मिल जाये । प्राणपदांश संख्या में १ अंश अधिक है, इसलिए इष्टकाल को कुछ कम करना होगा। यदि इष्टकाल में ३ पल कम कर दिया जाये तो प्राणपदांश लग्नांश से मिल जायेगा; क्योंकि १ पल में २ अंश होते हैं, अतः इष्टकाल २३ घटी २१३ मानना होगा। इस इष्टकाल पर से पूर्वोक्त प्रक्रिया के अनुसार लग्न के राश्यादि निकाल लेने चाहिए। प्राणपद से लग्न निश्चय करने में एक रहस्यपूर्ण बात यह है कि प्राणपद की राशि या उससे ५वीं, ७वीं और ९वीं लग्न की राशि आती हो अथवा प्राणपद की ७वीं राशि से ५वीं और ९वीं लग्न की राशि हो तो मनुष्य का जन्म समझना चाहिए। यदि प्राणपद की राशि से २री, ६ठी और १०वीं राशि लग्न-राशि हो तो पशु का जन्म; प्राणपद की राशि से ३री, ७वीं और ११वीं राशि लग्न-राशि हो तो पक्षी का जन्म एवं प्राणपद की राशि से ४थी, ८वीं और १२वीं राशि लग्न-राशि हो तो कीट, सर्पादि का जन्म समझना चाहिए। लड़के या लड़की की जन्मकुण्डली बनाते समय प्राणपद से मनुष्य जन्म सिद्ध न हो तो उस इष्टकाल को कुछ घटा-बढ़ाकर शुद्ध करना चाहिए । गुलिकसाधन अपने स्थान के दिनमान में ८ का भाग देकर प्रत्येक भाग में एक-एक अधिपति की कल्पना की जाती है और जिस भाग का अधिपति शनि होता है-शनि के खण्ड को गुलिक कहते हैं। प्रतिदिन के खण्डों के अधिपतियों की गणना उस दिन के भारतीय ज्योतिष १५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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