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प्रस्तुत उदाहरण में इष्टकाल २२।३२।१० है इसके घटी, पल जन्मनक्षत्र भरणी के घटी, पलों से अधिक हैं, अतएव भरणी गत नक्षत्र और कृत्तिका जन्मनक्षत्र माना जायेगा ।
६० । ० । ० में से
५।११।० बनारस में कृत्तिका का मान
६|४३|४० भरणी के मान को घटाया । १६।४० देशान्तर ५३।१६।२० - इसे दो स्थानों में रखा । ५।२७।४० आरा में कृत्तिका नक्षत्र का मान
५३।१६।२० में
२२।३२।१० इष्टकाल जोड़ा
१५।४८।३० भयात
लग्न निकालने की प्रक्रिया
जन्मसमय में क्रान्तिवृत्त का जो प्रदेश -स्थान क्षितिजवृत्त में लगता है, वही लग्न कहलाता है । दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि दिन का उतना अंश जितने में किसी एक राशि का उदय होता है, लग्न कहलाता है । अहोरात्र में बारह राशियों का उदय होता है, इसीलिए एक दिन-रात में बारह लग्नों की कल्पना की गयी है । 'फलदीपिका' में 'राशीनामुदयो लग्नं' अर्थात् एक राशि उदयकाल को लग्न बतलाया है । लग्न-साधन के लिए अपने स्थान का उदयमान जानना आवश्यक है । अतः चरखण्डों का साधन निम्न प्रकार करना चाहिए । सायन मेष संक्रान्ति या सायन तुला संक्रान्ति के दिन मध्याह्नकाल में १२ अंगुल शंकु की छाया जितनी हो, उतना ही अपने स्थान की पलभा का प्रमाण समझना चाहिए । इस पलभा को तीन स्थानों में रखकर प्रथम स्थान में १० से, दूसरे में ८ से
और तीसरे स्थान में 3 से गुणा करने पर मेषादि तीन राशियों में ऋण, कर्कादि तीन धन एवं मकरादि तीन राशियों में ऋण करने से उदयमान आता है ।
तीन राशियों के चरखण्ड होते हैं । इनको राशियों में धन, तुलादि तीन राशियों में
आरा की पलभा ५ अंगुल ४३ प्रत्यंगुल है । इसे तीन स्थानों में रखकर क्रिया की तो
( ५।४३ ) x १० = ५७|१० (4183) X ८ = ४५।४४
( ५।४३ ) x = १९॥३
५३।१६।२० में
५।२७।४० जन्मनक्षत्र कृत्तिका जोड़ा भभोगे
५८।४४ | ०
इन चरखण्डों का वेधोपलब्ध पलात्मक राशि- मान में संस्कार किया तो आरा
का उदयमान आया
१. भभोग का मान ६७ घटी तक हो सकता है । ६७ घटी से अधिक होने पर ही इसमें ६० का भाग देना चाहिए। भयात सदा भभोग से कम आता है।
द्वितीयाध्याय
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