SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३. उत्तम आकिञ्चन्य ( १. साध्यासाध्य विवेक; २. दृढ़ संकल्प; ३. आकिञ्चन्य; ४. सच्चा त्याग। अहो ! सम्पूर्ण बाह्य व अन्तरङ्ग परिग्रह का त्याग करके, यथार्थ अकिञ्चन् अवस्था को प्राप्त गुरुदेव ! आपकी महिमा गाने को कौन समर्थ है ? आकिञ्चन्य-धर्म की बात चलती है । आकिञ्चन्य अर्थात् 'किंचित् मात्र भी मेरा नहीं है। ऐसा अभिप्राय महान धर्म है. मेरा स्वभाव है। अपने से अतिरिक्त कोई भी अन्य पदार्थ इसलिए शान्ति के उपासक का यह अभिप्राय उसका धर्म है । 'शान्ति मेरा स्वभाव है, मुझे वही चाहिए और कुछ नहीं। उस शान्ति को छोड़कर अन्य कुछ भी नहीं चाहिए।' यह है गर्जना उस योगी की, शान्ति के उपासक की। १.साध्यासाध्य विवेक-परन्तु योगी कौन ? सभी तो योगी हैं। योगी का अर्थ है जुट जाने वाला। किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कमर कस कर जुट जाने वाला 'योगी' होता है । हम सभी तो कमर कस कर किसी लक्ष्य के प्रति जुटे हुए हैं । तो क्या हम योगी हैं ? हाँ अवश्य, परन्तु उपरोक्त योगी जैसे नहीं । अन्तर है अभिप्राय में । हमारा लक्ष्य है, 'मुझे तीन लोक की सम्पत्ति चाहिए, इसमें बाधा या इसके अतिरिक्त किंचित् मात्र भी मुझे सहन नहीं है, इसके सामने धर्म कर्म भी मुझे चाहिए नहीं।' और उपरोक्त योगी का लक्ष्य है, 'मुझे शान्ति चाहिए, इसमें बाधा या इसके अतिरिक्त किञ्चित् मात्र भी मुझे सहन नहीं, इसके सामने धन कुटुम्बादि भी मुझे चाहिए नहीं ।' कितना महान अन्तर है योगी और योगी में । एक का लक्ष्य है असाध्य तृष्णा और दूसरे का लक्ष्य है साध्य शान्ति । विचार तो सही कि क्या तीन-लोक की सम्पत्ति का लक्ष्य पूरा हो सकेगा? मृगतृष्णा में ही दौड़ता-दौड़ता मर जायेगा, सब कुछ यहीं छोड़ जायेगा, पुन: जन्मेगा, फिर उसी लक्ष्य को रखकर दौड़ता हुआ मर जायेगा। फल निकला केवल जन्म-मरण और अशान्ति, मृगतृष्णा की दाह । दूसरे का लक्ष्य है सच्चा साध्य वर्तमान में प्रयास करेगा, किञ्चित शान्ति प्राप्त होगी। मर जायेगा पर उसे साथ लेकर जायेगा । आगे जन्मेगा, फिर प्रयास करेगा, साथ लेकर गई हुई उस शान्ति में वृद्धि करेगा और दो चार बार में पूरी शान्ति प्राप्त कर लेगा। इसलिए उपरोक्त दो योगियों में से एक योगी है झूठा और दूसरा है सच्चा । अभिप्राय पर से ही पहिचान की जा सकती है इनकी। आज के भी युग में एक योगी हुआ है महात्मा गाँधी । वही उपरोक्त पुकार थी—'मुझे स्वतन्त्रता चाहिये, इसके अतिरिक्त कुछ नहीं । तीन-लोक के प्रलोभन मेरे सामने आयें परन्तु मेरी पुकार बदलने न पाये । स्वतन्त्रता भी कम नहीं चाहिये पूरी चाहिये। किसी को भी किञ्चित् मात्र हस्तक्षेप करने की आज्ञा मैं नहीं दूंगा, किंचित् मात्र भी अंग्रेजों की सत्ता को मैं स्वीकार नहीं करूँगा, उनके बच्चे-बच्चे को मेरा देश छोड़ना होगा, मेरी स्वतन्त्रता छोड़नी होगी।' लक्ष्य साध्य था, क्योंकि स्वतन्त्रता मेरा जन्म-सिद्ध अधिकार है और इसलिए इस गर्जना का प्रभाव समर यदि आवाज यह हुई होती कि 'मुझे सर्व विश्व पर सत्ता चाहिये, इससे किंचित् मात्र भी कम मुझे स्वीकार नहीं' तो आप ही बताइये कि क्या यह पुकार सच्ची होती है ? बस तो प्रभु ! अपनी इस धन की पुकार को बदलकर कोई सच्ची गर्जना उत्पन्न कर । यदि वास्तव में शक्ति का उपासक है, शान्ति को लक्ष्य में लिया है तो सच्चे अभिप्राय से इसकी साधना कर। २. दृढ़ संकल्प-यही गर्जना सच्चे योगियों में उठ रही है, शान्ति के उपासकों में उठ रही है, “मुझे शान्ति चाहिये, इसके अतिरिक्त किञ्चित् मात्र भी नहीं; धन-धान्य, घर-जायदाद, पुत्र-मित्र, स्त्री, विषय-सामग्री, वस्त्र इत्यादि की तो बात नहीं, उन्हें तो पहले ही त्याग बैठा हूँ, मुझे तो शरीर भी नहीं चाहिये, और इसके लिये आहार भी नहीं चाहिये। इतना ही नहीं अपनी शान्ति में किञ्चित् मात्र भी बाधा मुझे सहन नहीं, अत: ये संकल्प-विकल्प भी नहीं चाहिये, संस्कार भी नहीं चाहियें। इनके बच्चे-बच्चे को मेरा देश छोड़कर निकलना होगा, मेरी शान्ति छोड़कर भागना होगा। तीन लोक का बड़े से बड़ा प्रलोभन भी मेरी गर्जना को बदल नहीं सकता।” ओह ! कितना बल है इस गर्जना में और कितनी दृढ़ता, मानो आज सारा विश्व काँप उठा है इसे सुनकर । यह शान्ति प्राप्त करके ही हटेगा, एक दिन अवश्य देखने में आयेगा इसका प्रभाव । शान्ति चाहिये तो तू भी इतनी प्रबल गर्जना उत्पन्न कर, जिसमें बल तथा दृढ़ता हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002675
Book TitleShantipath Pradarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy