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________________ ( शान्ति पथ प्रदर्शन ) ॐ मंगलाचरण ॐ कार्तिक के पूर्ण चन्द्रमा वत तीन लोक में शान्ति की शीतल ज्योति फैलाने वाले हे शान्ति चन्द्र वीतराग प्रभु ! जिस प्रकार प्रारम्भ में ही जग के इस अधम कीट को, भाई बन्धुओं की राग रूप कर्दम से बाहर निकाल कर आपने इस पर अनुग्रह किया है, उसी प्रकार आगे भी सदा उसकी सम्भाल करना। संस्कारों को ललकार कर उनके साथ अद्वितीय युद्ध ठानने वाले महा पराक्रमी बाहुबली ! जिस प्रकार कर्दम से बाहर निकाले गए इस कीट के सर्व दोषों को क्षमा कर इसका बाह्य मल आपने पूर्व में ही धोया था, उसी प्रकार आगे भी इस निर्बल को बल प्रदान करना । ताकि पुन: मल की ओर इसका गमन न हो। महान उपसर्ग विजयी हे नागपति ! जिस प्रकार व्रतों की यह निधि प्रदान कर, इस अधम का आपने उस समय उद्धार किया था, उसी प्रकार आगे भी इसे उस महान विधान से वञ्चित न रखना। हे विश्व मातेश्वरी सरस्वती ! कुसंगति में पड़ा मैं आज तक तेरी अवहेलना करता हुआ, अनाथ बना दर दर की ठोकरें खाता रहा। माता की गोद के सुख से वंचित रहा। अब मेरे सर्व अपराधों को क्षमा कर । मुझे अपनी गोद में छिपा कर भव के भय से मुक्त कर दे। हे वैराग्य आदर्श गुरूवर ! मुझको अपनी शरण में स्वीकार किया है, तो अब अत्यन्त शुभ चन्द्र ज्योति प्रदान करके मेरे अज्ञान अन्धकार का विनाश कीजिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002675
Book TitleShantipath Pradarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size10 MB
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