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वास्तुसारे
जब अपने शरीर की छाया रविवार को ग्यारह, सोमवार को साढ़े आठ मंगलवार को नव, बुधवार को आठ, गुरुवार को सात, शुक्रवार को साढ़े आठ और शनिवार को भी साढे आठ पैर हो तब उसको सिद्धछाया कहते हैं, वह सब कार्य की सिद्धिदायक है ॥ १०३ ॥
प्रकारान्तर से सिद्धछाया लग्न
वीसं सोलस पनरस चउदस तेरस य बार बारेव । रविमाइसु बारंगुल संकुषायंगुला सिद्धा ॥ १०४ ॥
जब बारह अंगुल के शंकु की छाया रविवार को बीस, सोमवार को सोलह, मंगलवार को पंद्रह, बुधवार को चौदह, गुरुवार को तेरह, शुक्रवार को बारह और शनिवार को भी बारह अंगुल हो तब उसको भी सिद्धछाया कहते हैं ॥ १०४ ॥
शुभ मुहूर्त्त के अभाव में उपरोक्त सिद्धछाया लग्न से समस्त शुभ कार्य करना चाहिये | नरपतिजयचर्या में कहा है कि
नक्षत्राणि तिथिवारा-स्ताराश्चन्द्रबलं ग्रहाः ।
दुष्टान्यपि शुभं भावं भजन्ते सिद्धच्छायया ॥ १०५ ॥
नक्षत्र, तिथि, वार, ताराबल, चन्द्रबल और ग्रह ये कभी दोषवाले हों तो भी उक्त सिद्धछाया से शुभ भाव को देनेवाले होते हैं ।। १०५ ॥
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