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(१८)
वास्तुसारे श्वान, तवर्ग का सर्प, पवर्ग का उदुर, यवर्ग का हरिण और शवर्ग का मांढा (बकरा) है। इन वर्गों में अन्योऽन्य पांचवाँ वर्ग शत्रु होता है ॥ ३६ ॥
लेन देन का विचारनामादिवर्गाङ्कमथैकवर्ग, वर्णाङ्कमेव क्रमतोस्क्रमाच्च । न्यस्योभयोरष्टहृतावशिष्टे-ऽर्द्धिते विथोपाः प्रथमेन देयाः ॥ ३७॥
दोनों के नाम के आद्य अक्षरवाले वर्गों के अंकों को क्रम से समीप रख कर पीछे इसको आठ से भाग देना, जो शेष रहे उसका आधा करना, जो बचे उतने विश्वा प्रथम अंक के वर्गवाला दुसरे वर्ग वाले का करजदार है, ऐसा समझना । इस प्रकार वर्ग के अंकों को उत्क्रम से अर्थात् दूसरे वर्ग के अंक को पहला लिखकर पूर्ववत् क्रिया करना, दोनों में से जिनके विश्वा अधिक हो वह करजदार समझना ॥ ३७ ।।
उदाहरण-महावीर स्वामी और जिनदास इन दोनों के नाम के आद्य अक्षर के वर्गों को कम से लिखा तो ६३ हुए, इनको आठ से भाग दिया तो शेष ७ पचे, इनके आधे किये तो साढे तीन विश्वा बचे इसलिये महावीरदेव जिनदास का साढे तीन विश्वा करजदार है । अय उत्क्रम से वर्गों को लिखा तो ३६ हुए, इनको आठ से भाग दिया तो शेष चार बचे, इनके आधे किये तो दो विश्वा बचे. इसलिये जिनदास महावीर देव का दो विश्वा करजदार है । बचे हुए दोनों विश्वा में से अपना लेन देन निकाल लिया तो डेढ विश्वा महावीरदेव का अधिक रहा, इसलिये महावीरदेव डेढ विश्वा जिनदास के करजदार हुए । इसी प्रकार सर्वत्र लेन देन समझना।
योनि, गण, राशि, तारा शुद्धि और नाडीवेध ये पांच तो जन्म नक्षत्र से देखना चाहिये। यदि जन्म नक्षत्र मालूम न हो तो नाम नचत्र से देखना चाहिये । किन्तु वर्ग भैत्री और लेन देन तो प्रसिद्ध नाम के नक्षत्र से ही देखना चाहिये, ऐसा आरम्मसिद्धि ग्रंथ में कहा है ।
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