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क्षत्रपाल का स्वरूप
निर्वाणकलिका के मत से क्षेत्रपाल का स्वरूप ---
क्षेत्रपालं क्षेत्रानुरूपनामानं श्यामवर्ण वर्षरकेश मावृत्तपिङ्गनयनं विकृ तदंष्ट्रं पादुकाधिरूढं नग्नं कामचारिणं षड्भुजं मुद्गरपाशडमरुकान्वितदक्षिणपाणिं श्वान | ङ्कुश गेडिकायुतवामपाणिं श्रीमद्भगवतो दक्षिणपार्श्वे ईशानाश्रितं दक्षिणाशामुखमेव प्रतिष्ठाप्यम् ।
( १७५)
अपने २ क्षेत्र के नामवाले, श्याम वर्णवाले, बर्बर केशवाले, गोल पीले नेत्रवाले, विरूप बड़े २ दांत वाले, पादुका पर बैठे हुए, नग्न, छः भुजावाले, मुद्गर, फाँसी और डमरू को दाहिने हाथ में और कुत्ता अंकुश और गेडिका ( लाठी ) को बाँयें हाथ में रखनेवाले, भगवान् की दाहिनी और ईशान तरफ दक्षिणाभिमुख स्थापन करना चाहिये ।
माणिभद्र क्षेत्रपाल का स्वरूप
ढक्काशूल सुदामपाशाङ्कुशखः । स्वस्करषट्कं युक्तं भात्यायुधवगैः ॥
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माणिभद्रदेव कृष्ण वर्णवाले, ऐरावण हाथी की सवारी करनेवाले, वराह के मुखवाले, दांत पर जिन मंदिर धारण करनेवाले छः भुजावाले, दाहिनी भुजाओं में ढाल, त्रिशूल और माला; बाँयीं भुजाओं में नागपाश, अंकुश और तलवार को धारण करनेवाले हैं । ऐसा तपागच्छीय श्री अमृतरत्नसूरि कृत माणिभद्र की भारती में कहा है ।
सरस्वती देवी का स्वरूप
श्रुतदेवतां शुक्लवर्णी हंसवाहनां चतुर्भुजां वरदकमलान्वितदक्षिण करां पुस्तकाक्षमालान्वितवामकरां चेति ।
सरस्वती देवी सफेद वर्णवाली, हंस की सवारी करनेवाली, चार भुजावाली, दाहिने हाथों में वरदान और कमल, बाँयें हाथों में पुस्तक और माला को धारण करनेवाली है ।
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१ श्राचारदिनकर और सरस्वती के तंत्रों में दाहिने हाथों में माला और कमल, बाँयें हाथों में वीणा और पुस्तक को धारण करनेवाली माना है ।
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