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( १३४ )
वास्तुसार "कलशत्रिपदो प्रोक्तो भागेनान्तरपत्रकम् ।
कपोताली त्रिभागा च पुष्पकण्ठो युगांशकम् ॥ १३ ॥" जगती की ऊंचाई का अट्ठाईस भाग करना। उनमें तीन भाग का जाड्यकुंभ, दो भाग की कणी. पद्मपत्र सहित तीन भाग की ग्रास पट्टी, दो भाग का खुरा, सात भाग का कुंभा, तीन माग का कलश, एक भाग का अंतरपत्र, तीन भाग केवाल और चार भाग का पुष्पकंठ करना ॥ ११-१२-१३ ॥
"पुष्पकाज्जाडयकुंभस्य निर्गमस्याष्टभिः पदैः।।
कर्णेषु च दिशिपालाः प्राच्यादिषु प्रदक्षिणे ॥ १४ ॥" पुष्पकंठ से जाड्यकुंभ का निर्गम आठ भाग करना । पूर्वादि दिशाओं में प्रदक्षिण क्रम से दिक्पालों को कर्ण में स्थापित करना ॥ १४ ॥
"प्राकारैर्मण्डिता कार्या चतुर्भिारमण्डपैः ।
मकरैर्जलनिष्कासैः सोपान-तोरणादिभिः ॥१५॥ जगती किला ( गढ़ ) से सुशोभित करना, चारों दिशा में एक २ द्वार बलाणक (मंडप) समेत करना जल निकलने के लिये मगर के मुखवाले परनालें करना, द्वार आगे तोरण और सीढिएँ करना ॥ १५ ॥ प्रासाद के मंडप का क्रम
पासाय कमलबग्गे गूढक्खयमंडवं तयो छकं । पुण रंगमंडवं तह तोरणसबलाणमंडवयं ॥४१॥
प्रासादकमल (गंभारा) के आगे गूढमंडप, गूढमंडप के भागे छः चौकी, छः चौकी के आगे रंगमंडप, रंगमंडप के आगे तोरण युक्त बलाणक (दरवाजे के ऊपर का मंडप ) इस प्रकार मंडप का क्रम है ।। ४६ ।। प्रासादमंडन में भी कहा है कि"गूढास्त्रिकस्तथा नृत्यं क्रमेण मंडपास्त्रयम् । जिनस्याग्रे प्रकर्त्तव्याः सर्वेषां तु बलानकम् ।"
जिन भगवान के प्रासाद के आगे गूढमंडप, उसके आगे त्रिक तीन (नव चौकी) और उसके आगे नृत्यमंडप (रंगमंडप),ये तीन मंडप करना चाहिये, तथा उन सबके आगे वलानक (दरवाजे पर का मंडप) सब मंदिरों में करना चाहिये ।
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