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________________ (६६) वास्तुसारे प्रतिमा के मस्तक पर के छत्रत्रय का विस्तार बीस अंगुल और निर्गम दस भाग करना। भामंडल का विस्तार बाईस भाग और मोटाई पाठ भाग करना ॥ ३५ ॥ मालधर सोलसंसे गइंद अट्ठारसम्मि ताणुवरे । हरिणिंदा उभयदिसं तो अ दुंदुहित्र संखीय ॥ ३६ ॥ दोनों तरफ माला धारण करनेवाले इंद्र सोलह २ भाग के और उनके ऊपर दोनों तरफ अठारह २ भाग के एक २ हाथी, उन हाथियों के ऊपर बैठे हुए हरिण गमेषीदेव बनाना, उनके सामने दुंदुभी बजानेवाले और मध्य में छत्र के ऊपर शंख बजानेवाला बनाना चाहिये ।। ३६ ॥ बिंबद्धि डउलपिंडं छत्तसमेयं हवइ नायव्वं । थणसुतसमादिट्ठी चामरधारीण कायव्वा ॥ ३७॥ छत्रत्रय समेत डउला की मोटाई प्रतिमा से आधी जानना । पखवाड़े में चामर धारण करनेवाले की या काउस्सग ध्यानस्थ प्रतिमा की दृष्टि मूलनायक प्रतिमा के बराबर स्तनपत्र में करना ॥ ३७॥ जइ हुति पंच तित्था इमेहिं भाएहिं तेवि पुण कुज्जा। उस्सग्गियस्स जुलं बिंबजुगं मूलबिंबेगं ॥ ३८ ॥ पखवाड़े में जहां दो चामर धारण करनेवाले हैं, उस ही स्थान पर दो काउस्सग ध्यानस्थ प्रतिमा तथा डउला में जहां वंश और वीणा धारण करनेवाले हैं, वहीं पर पद्मासनस्थ बैठी हुई दो प्रतिमा और एक मूलनायक, इसी प्रकार पंचतीर्थी यदि परिकर में करना हो तो पूर्वात जो भाग चामर वंश और वीणा धारण करने वाले के कहें हैं, उसी भाग प्रमाण से पंचतीर्थी भी करना चाहिये ॥ ३८ ॥ प्रतिमा के शुभाशुभ लक्षण वरिससयायो उड्ढं जं बिंध उत्तमेहिं संठवियं । विअलंगु वि पूइज्जइ तं विवं निष्फलं न जओ ॥३१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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