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________________ आदर्श जीवन । - अब दिल्लीमें रहना आपके लिए कठिन हो गया। आपने वहाँसे विहार करनेकी ठान ली। दिल्लीके श्रीसंघने चौमासा वहीं करनेकी विनती की। मुनि महाराज १०८ श्रीकमलविजयजी आदिने कहा:--" तुम किसी तरहकी चिन्ता न करो। हम तुम्हारे पढ़ने लिखनेका सब इन्तजाम कर देंगे। तुम्हें किसी तरहकी तकलीफ न होने देंगे ।" मुनि महाराज १०८ श्री शान्ति विजयजीने कहा:-" मैं खुद तुम्हें जितनी देर चाहोगे उतनी देर पढ़ाऊँगा। तुम यहीं रहो।" ___ आपने कहा:-" आपकी मुझपर असीम कृपा है कि, आप मुझे अपने पास रखना चाहते हैं । मुझे इस बातका फ़न है और मैं अपने आपको धन्य मानता हूँ। मगर मेरा अन्तरात्मा कहता है कि, मुझे गुरुचरणों या आचार्यश्रीके चरणोंके सिवा अन्यत्र कहीं शान्ति नहीं मिलेगी। गुरुचरण तो अब असंभव होगये हैं अतः श्रीआचार्य महाराजके चरणोंमें जाकर ही रहूँगा।" __ आपने अपने दोनों सतीर्थी-गुरु भाई श्रीशुभविजयजी और श्री मोती विजयजीको साथ लेकर दिल्लीसे पंजाबकी तरफ विहार किया। तीनों इस देशसे अपरिचित थे। इस लिए बड़ी सड़क " पर चल पड़े और क्रमशः अंबाले शहरमें जा पहुँचे । जब आपने सुना कि, आचार्यश्री छावनीमें पधार गये हैं तब आप सामने गये और भेट होने पर आचार्यश्रीके चरणों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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