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________________ ( १७३ ) अपना चारित्र पालते वक्त किसी भी तरहके अनुकूल या प्रतिकूल उपसर्ग हों तो उनसे विचलित न होकर अपने चारित्रमें दृढ रहें । दुनियाकी हरेक चीजको आँखोंवाले देख सकते हैं । जिनके आँखें नहीं हैं, वे कुछ भी नहीं देख सकते । जिनके विवेक चक्षु हैं, वे भगवान वीरके चरित्रमें बहुतसी उत्तम बातें देख सकते हैं, जिनके विवेक चक्षु नहीं हैं उन्हें उनके चरित्रमें कुछ भी दिखाई नहीं देगा | भगवान के चरित्रमेंसे मुख्यतया हमें जो कुछ सीखना है वह यह है कि, वीरता के कार्य कर हमें अपना वीरपुत्र नाम सार्थक करना चाहिए । यदि हम वीरताके कुछ भी कार्य न करें तो उनके चरित्रसे हमें कोई लाभ नहीं है । यदि हम वीरताका गुण प्रकट करेंगे, वीरताका गुण प्रकट करनेके लिए वीरकी उपासना करेंगे तो सेव्य सेवक भाव निकल जायगा और हम अवश्य मेव उनके समान ( कर्मको नष्ट करने के लिए ) वीर हो सकेंगे । 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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