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________________ ( १६४ ) 3 वाली माता जब उपकार करनेवाली है तब जन्म भर दूध, घीं खिलाकर पुष्ट रखनेवाले पशु क्या उपकारी नहीं हैं । माता तो थोड़े ही दिनतक दूध पिलाती है; मगर पशु तो जिन्दगी भर दूध पिलाते हैं। अगर उपकार करनेवाली माताकी सेवा करना उचित है तो फिर जन्मभर घी, दूध पिलाकर उपकार करनेवाले पशुओंकी भी सेवा करना चाहिए या उन्हें मार कर खा जाना चाहिए ? अगर इन्साफ कोई चीज है तो तुम खुद ही इस बातको भली. प्रकार समझ लोगे । ईसा० महाराज ! मैंने आपको तकलीफ दी क्षमा कीजिए, मगर आपके वचनसे मेरा मन बदल गया है । मैं सच्चे दिलसे कहता हूँ कि जहाँतक मेरा वश चलेगा मैं खुद तो मांस खाऊँगा ही नहीं दूसरों को भी खानेसे रोकूँगा । फिर वह नमस्कार कर चला गया । सज्जनो ! गंभीरता और मधुरताके फल आपने देखे । अब मैं आचार्यश्रीकी निरभिमानताका परिचय कराऊँगा । पंडित हंसराजजी बता चुके हैं कि, आचार्यश्री प्रतिष्ठा या मानके भूखे न थे। उसीको पुष्ट करते हुए मैं कहूँगा कि, उनको मानसे बिलकुल प्रेम न था । वे हमेशा सत्यस प्रेम करते थे । स्वयं अकेले न थे । उनके ओंका परिवार था । यदि वे अपने आप दीक्षित हो क्या कोई उन्हें बाहर निकाल देता ? मगर नहीं, उन्हें शास्त्रकी रीति पसंद थी । यदि उन्हें मनःकल्पित रीति ही रखनी होती तो वे ढूँढियापन ही क्यों छोड़ते ? अपने आप दीक्षित होना जैन शास साथ पन्द्रह साधु कर फिरते तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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