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________________ ५८ आदर्श जीवन । ~~~~ ~~~~~ unuw anranimua n and आँसू हृदयको हल्का करने की एक अमोघ ओषधि है। जब खीमचंदभाई बहुत आँसू बहा चुके तब उनका मन स्थिर हुआ और वे बोले:-" प्यारे भाई ! देखना जिस उत्साहसे आज दीक्षा लेनेको तैयार हुआ है वह उत्साह कभी ठंडा न पड़े। सदा शुद्ध चरित्र रखना । संयम पालनेमें शिथिलता न करना । कोई ऐसा काम न करना जिससे गुरुके या पिताके नामपर कलंक लगे । सदा गुरु महाराजकी आज्ञामें रहना और धर्मसेवा कर शासनको देदीप्यमान करना ।" ___ आपने अपने भाईकी पदरज सिरपर लगाई और कहा:" दादा ! आपके आशीर्वादसे मेरा उत्साह कभी शिथिल न होगा । मैंने आपको कष्ट पहुँचाया है इसके लिए मुझे क्षमा करें।" __ खीमचंदभाईने एक बार और छगनको छातीसे लगाया । और हमेशाके लिए छगनको-छगन नामको विदा कर दिया। फिर वे साधुमंडलीको वंदना कर वहाँसे रवाना हुए । चलते समय खीमचंदभाईने कुछ रकम पारख मोहन टोकरसीको दी और कहा:-" सेठ ! यदि संभव होगा तो मैं दीक्षाके मौकेपर आजाऊँगा अन्यथा मेरी यह थोड़ीसी भेट दीक्षा महोत्सवमें शामिल करलेना।" खीमचंदभाई बडोदे चले गये और दीक्षा महोत्सवपर न आसके। बड़ी धूमसे दीक्षाकी तैयारी हुई। एक महीने तक लगातार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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