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________________ ( १३० ) मुख्ये कार्यसम्प्रत्ययः " इस न्यायसे संहिता मुख्य तथा ब्राह्मण ग्रन्थ गौण हैं. अतएव जैन पण्डितको मूल वेदसे ही हिंसा बतलानी चाहिये । " - जज साहबने कहा, " ऐसा क्यों ? यह न्याय इस स्थलके लिये नहीं आप लोग विचारकर बोलें । " ( इतना कहकर हँस दिये और सनातनी पण्डितोंसे बोले कि . ) " आपलोगों में किसीने भी उत्तर ठीक नहीं दिया खैर ! जैन पं० ब्रजलालजी ! आप मूल वेदमें हिंसा बतला सकते हैं या नहीं ? उत्तरमें पण्डितजीने कहा कि, "हमारा यह पक्ष ही नहीं है, क्यों कि आत्मारामजी महाराजके बनाए हुये अज्ञानतिमिरभास्करके लेखको सत्य सिद्ध करना यही हमारा पक्ष है । यदि मूल वेदके विषयमें आप निर्णय करना चाहते हों तो, स्वयं पं० ज्वालाप्रसादजीने तथा पं० भीमसेन शर्माने अपनी लेखनीसे ही मूल वेदमें हिंसा सिद्ध की है । " इस वाक्यको सुनकर जज साहबने कहा, – “ दिखलाओ। " शीघ्र ही पं० ज्वालाप्रसादजी मिश्रका - " मिश्र भाष्य" दिखलाया गया, जिसमें अश्वको मारकर उसके मांसको पकाना इत्यादि अश्वमेध यज्ञका वर्णन लिखा था ! वैसे ही पं० भीमसेनजीका लेख दिखलाया गया । उन्होंने साफ लिखा है, –“ वेदमें लिखा है कि आए हुए ब्राह्मण वा क्षत्रिय राजा वा अतिथिके लिये बड़े बैल वा बड़े बकरे को पकावे । " इन वाक्यों को सुनकर सनातन धर्मावलंबी तथा उनके पं० भीमसेनजी व ज्वालाप्रसादजी कुछ भी नहीं बोल सके । तदनन्तर मध्यस्य पुरुषोंने कहा कि जो कुछ मतलब है हम खूब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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