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(१२१) लगीं। फल यह हुआ कि उन्होंने एक छोटीसी किताब छपवाकर, श्रीआत्मारामजी महाराजके विरुद्ध सनातन धर्मावलंबी भाइयोंको खड़ा किया, तथा द्रव्यादिसे उनकी सहायता करने लगे। किताबमें ऐसे वाक्य लिखे हुवे थे,--- आत्मारामजी पुजेरेने अपने बनाये 'अज्ञान तिमिर भास्कर' नामक ग्रन्थमें लिखा है कि वेदोंमे नरमेध, गोमेध तथा अश्वमेध आदि यज्ञोंका विधान है। ब्राह्मण लोग, मनुष्य गाय, घोड़े आदि प्राणियोंको मारकर यज्ञ करते थे। ब्राह्मण भाइयो ! क्या यह बात सच्ची है ?"
इस किताबको देखकर, सनातन धर्मावलंबी बहुत बिगड़े। उन्होंने नोटिस दिया, जिसका आशय यह था,-" आत्मारामजी महाराजने अज्ञान तिमिर भास्करमें। हमारे शास्त्रोंसे जो जो प्रमाण हिंसा साबित करनेके लिये दिये हैं, उनको सत्य ठहरानेके लिये आप लोग अपने पण्डितोंको बुलावें, हम लोग भी अपने पण्डितोंको बुलाते हैं । अगर इस नोटिसका जवाब नहीं दोगे तो आत्मारामजी मिथ्यावादी समझे जायेंगे।" __इस नोटिसको पाकर जैन भाइयोंकी ओरसे उत्तरमें नोटिस दिया गया । उसमें यह प्रार्थना की गई थी,-" श्रीमान् आत्मारामजी महाराजने अज्ञानतिमिर भास्करमें वेदादि शास्त्रोंसे जो २ प्रमाण दिये हैं वे सत्य हैं। किताब छपेको इक्कीस वर्ष हुए अभी तक किसी महाशयने उसके विषयमें तकरार नहीं उठाई। आप लोगोंको यदि सन्देह हुवा हो, तो, अज्ञान तिमिर भास्करमें दिये हुए प्रमाणोंको अपने शास्त्रोंसे मिलाकर स्वयं देख लेवे, अथवा अपने पण्डितोंको
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