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________________ (९८) प्रस्ताव तेईसवाँ। आजकाल कितनेक साधु लोग शिष्य बनानेके लिये देशकालके विरुद्ध वर्ताव करते हैं, जिससे जैनधर्मकी अवहेलना होनेके अनेक प्रसंग प्राप्त होते हैं । इसी प्रकार मुनियोंको भी कभी २ अनेक कष्ट उठाने पड़ते हैं । इस लिये यह सम्मेलन इस प्रकार दीक्षा देकर शिष्य करनेकी पद्धतिको और इस प्रकार दीक्षा देनेवाले और लेनेवालेको अत्यन्त असन्तोषकी दृष्टिसे देखता है और प्रस्ताव करता है कि, अपने समुदाय के साधुओंमेंसे किसीको ऐसी खटपटमें नहीं पड़ना चाहिये । जो कोई मुनि ऐसी खटपटमें पडेगा उसके लिये आचार्यनी महारान सख्त विचार करेंगे। इस प्रस्तावके उपस्थित होनेपर मुनि श्रीचतुरविजयजी महाराजने कहा था कि, आजकल इस प्रकारकी दीक्षासे साधु ओंकी हदसे ज्यादह निंदा होती सुननेमें आती है। जिससे कितनेक जैन या मैनेतर लोकोंके मनमें साधुओंपर अप्रीति होती जाती है। कितनीक जगह तो बिचारे श्रावकोंको सैकड़ों बलकि हजारोंके खर्चमें उतरना पड़ता है, जो कि, साधुओंके लिये विचारणीय है । तथा ऐसी खटपटमें पड़नेसे साधुको अपने ज्ञान ध्यानसे चूक रातदिन प्रायः आर्त ध्यान करनेका मौका आ पड़ता है। इतना ही नहीं श्रावकोंकी वा अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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