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________________ (७ ) वैसे का वैसाही रखना, अगर चक्षु प्रमुख रोगादि कारणसे, क्षुर मुंडन करवाना पड़े तो, गुरु आज्ञासे महीने मेहीने शास्त्रानुसार क्षुरमुंडन करवाना; लेकिन, क्षुरमुंडन करवानेवालेने चार वा छै महीने तक केश न बढाना । प्रस्ताव आठवा। कितनेक गृहस्थी लोग उपाश्रयमें कपड़ा लाते हैं और साधुओंको वेहराते हैं यह शास्त्र विरुद्ध है । अतः अपने साधु गृहस्थीके मकान पर जाकर जरूरत हो उतना ले आवे किंतु, उपाश्रयमें लाया हुआ नहीं वेहरे (लेवें)* * इस प्रस्तावपर सभापतिजीकी आज्ञानुसार महाराज श्रीवल्लभविजयजीने श्रावक श्राविका वर्गको उद्देश करके कहा था कि, शास्त्रोमें श्रावक श्राविकाको मातपिताकी उपमा दी है। जैसे मातापिता निजपुत्रको अहितसे रोक हितमें प्रेरणा करते हैं, ऐसे ही मातापिता तुल्य श्रावक वर्गको चाहिये कि, वे निजपुत्रके समान साधुकी अहितसे रक्षा कर उसके हितमें प्रवृत्ति करें । इसलिये आपको शास्त्रकारकी आज्ञानुसार जो आज्ञा सभाध्यक्षजीकी तर्फसे सर्व साधुमंडलने स्वीकृत की है उसपर ध्यान देना योग्य है । हाँ वस्त्रकी प्रार्थना करना आपका धर्म है । साधुको जरूरत होगी तो आपके मकानसे यथा योग्य गुर्वादिकी आज्ञानुसार ले आवेगा, परंतु, तुम लोग जो गठड़े के गठड़े उठा उपाश्रयमें लाकर साधुको देते हो मेरा ख्याल है कि, साधुओंको एक प्रकारकी शिधिलतामें आप लोग मदद देते हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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