SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 646
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६९) जिस गुणके प्रभावसे साधुमें सहनशीलता परस्पर प्रीतिभाव (संप) की वृद्धि होगी । अतः इस नियमको पास करनेके लिये जोरके साथ मैं मुनिमंडलके ध्यानको आकर्षित करता हूँ। · अंतमें यह प्रस्ताव सर्वकी संमतिके अनुसार पास किया गया. प्रस्ताव पाँचवाँ। जिसने एक दफा दीक्षा लेकर छोड़दी हो उसको विना श्री आचार्य महाराजकी आज्ञाके, दुबारा दीक्षा नहीं देनी चाहिये। संवेग पक्षके अलावा अन्यके लिये भी जहाँतक हो सके वहाँतक आचार्य महाराजकी आज्ञानुसार ही कार्य करना ठीक है । ___ इस प्रस्तावको पन्यास श्रीदानविजयनीने पेश करते हुए कहा कि, जो एक वार दीक्षा छोड़कर चला गया हो और वह पुनः दीक्षा लेने आवे तो उसके लिये इस अंकुशकी खास जरूरत है । कारण कि, वह मनुष्य किस कारण दुबारा दीक्षा लेता है, यह समझनेकी शक्ति जितनी मोटे पुरुषोमें होती है उतनी सामान्य साधुमें नहीं होती । कदाच दूसरी बार भी दीक्षा लेकर फिर छोड़ दे। इसलिये आचार्य महाराजकी सम्मति लेनी चाहिये । इस प्रस्तावकी पुष्टि मुनि श्रीललितविजयजीने की थी बाद मे यह प्रस्ताव सर्व सम्मतिसे पास किया गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy