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________________ (६६) प्रस्ताव तीसरा। अपने समुदायके मुनियोंको एकल विहारी नहीं होना चाहिये, अर्थात् दो साधुसे कम न रहना चाहिये । यदि किसी कारणसे एकके ही रहनेका प्रसंग आवे तो श्रीमद् आचार्य महाराजकी आज्ञा ले लेना चाहिये। यह नियम मुनिराज श्रीवल्लभविजयजी महाराजने पेश किया था। जिसपर मुनि श्रीप्रेमविजयजीने पूर्णतया पुष्टि दिये बाद सर्व मुनियोंकी संमति अनुसार यह प्रस्ताव पास किया गया । ___ इस नियमको उपस्थित करते हुए, मुनिराज श्रीवल्लमविजयजीने मुनिमंडलके ध्यानको आकर्षित कर कहा कि, शास्त्राज्ञानुसार साधुको दोसे कम, और साध्वियोंको तीनसे कम नहीं रहना चाहिये । जहाँ कहीं इस शास्त्राज्ञासे विपरीत हो रहा है, वहाँ स्वच्छंदता आदि अनेक दोषोंका समावेश हुआ नजर आ रहा है ! अतः इस बातमें श्रावक लोगोंका भी कर्त्तव्य समझा जाता है कि, जब कभी किसी अकेले साधुको देखें तो शीघ्र ही उसके गुरु आदिको खबर कर देवें ताकि, एकल विहारियोंको कुछ खयाल होवे; परंतु, श्रावकोंको उपाश्रयका दरवाजा खुला रखना, और सौ डेढ़सौ रुपये की, पर्युषणाके दिनोंमें पैदायश करनी, इस बातका ही खयाल नहीं रखना चाहिये ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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