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________________ ( ६४ ) 1 अपने साधुओंका सम्मेलन होनेका पहला ही प्रसंग है, जिससे प्रथम आरंभ मजबूत काम होना चाहिये, ताके भविष्य में यह अपना प्रथम संमेलन औरोंके लिये उदाहरण रूप हो जाने । अतः मैं आशा करता हूँ कि, सब मुनिमंडल इस बातको लक्षमें रखकर इस कार्यमें सफलता प्राप्त करेगा । अब मैं इतना ही कहकर अपने भाषणको समाप्त करता हूँ । २. ( इसके बाद नियमानुकूल जो प्रस्ताव और विवेचन हुए वे क्रमशः लिखे जाते हैं । ) प्रस्ताव पहला । अपने समुदायके प्रत्येक साधुको चाहिये कि, वर्त्तमान आचार्य महाराज जहाँ चतुर्मास करनेके लिये कहें, वहाँ ही किया जाय; यदि किसीकी इच्छा किसी अन्य क्षेत्रमें चतुर्मास करनेकी हो, और आचार्य महाराज वहाँकी अपेक्षा और कहीं चतुर्मास करने में अधिक लाभ समझते हों तो, उनकी आज्ञानुसार दूसरे ही स्थानपर प्रसन्नतापूर्वक चतुर्मास व्यतीत करना चाहिये । यह प्रस्ताव उपाध्याय श्रीवीरविजयजी महाराजने पेश किया था; जिसकी पुष्टि मुनिराज श्रीहंसविजयजी महाराजने बड़ी अच्छी तरहसे की थी । आखिर सर्व मुनियोंकी सम्मतिके अनुसार प्रथम प्रस्ताव पास किया गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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