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(३८) वेष समभावपना जीवमें आ जावे तो निस्सन्देह वह मोक्षको प्राप्त कर सकता है । यही महर्षियोंका कथन है“ सेयंबरो व आसंबरो व बुद्ध व अहव अन्नो का।
समभावभावियप्पा लहइ मुक्खं न संदेहो ॥"
बस इसीसे उन्नतिकी अभिलाषा सफल हो सकती है। सुज्ञ श्रोतृगण ! जैनधर्म, खास किसी व्यक्ति अथवा जातिका धर्म नहीं, किन्तु सार्वजनिक है । व्यक्ति मात्रका अनुष्ठेय है। हरएक मनुष्य इसे बड़ी खुशीसे अपने व्यवहारमें ला सकता है। जैन ' नाम है, जिन परमात्माके उपदेश किये हुए धर्मके अनुष्ठान करनेवालेका । जिन शब्द 'जि' धातुसे बना है। जिसने राग द्वेषादि अन्तरंग शत्रुओंपर विजय प्राप्त करली हो, वह जिन कहाता है । जिन किसी खास आदमीका नाम नहीं, किन्तु जिसे उक्त अधिकार प्राप्त हो चुका हो, ऐसा हरएक महापुरुष जिनके नामसे व्यवहृत किया जा सकता है । इसलिए हम, रागद्वेष रहित उक्त जिनको गुणनिष्पन्न शंकर, ब्रह्मा, विष्णु, हर, महादेव आदि जिस नामसे पहचानना चाहें पहचान सकते हैं! अतः इस प्रकारकी व्यक्तिका उपदेश ( धर्म ) यावत् मनुष्योंके लिए समान है। इसलिए उक्त धर्मको सार्वजनिक कहने में कोई त्रुटि मालूम नहीं देती । ( करतल ध्वनि)
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