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________________ (२३) उच्च नीचता आत्मामें हमेशांके लिए नहीं है । इस विषयपर महात्मा आनंद घनजीने बहुत ही ठीक कहा हैअवधू ऐसो ज्ञान विचारी । वामें कौन पुरुष कौन नारी ॥अवधू०॥ बामनके घर न्हाती धोती, जोगीके घर चेली। कलमां पढ़कर भइरे तुरकड़ी, आपो आप अकेली ॥ आत्माकी उन्नत्ति और अवनति उसके अच्छे बुरे विचारोंपर अवलंबित है। जैसे गंदा पानी अमुक प्रयोगसे साफ किया हुआ पीने लायक बन जाता है, इसी तरह मलिनात्मा भी सत् कर्मके अनुष्ठानसे निर्मल हो जाता है । ( करतल ध्वनि ) ___ महानुभावो ! धर्मका रहस्य समझनेके लिए किसी तत्त्वपर जब तक अमुक अपेक्षा, अथवा किसी एक दृष्टिको लेकर विचार न किया जाय, तब तक धर्मके नामसे पड़ी हुई भेदभावकी विकट ग्रंथिका सुलझना बहुत कठिन है । धर्मकी एकताके विना सामाजिक उन्नति और देशोन्नतिका होना मुशकिल है। धर्म सुखका एक मुख्य साधन है यह बात निर्धात है परन्तु उसको उचित रीतिसे कार्य क्षेत्रमें न लानेसे वह दुःखका कारण भी हो सकता है, और हो रहा है। इसका कारण अपनी २ स्वतंत्र मान्यता है । भिन्न २ प्रकारकी मान्यताओंसे धर्म भी सर्वथा भिन्न २ .एक दूसरेका विरोधी हो रहा है । परस्परके आघात प्रत्याघातोंसे विभिन्नताकी दावाग्नि उत्तरोत्तर अपना अधिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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