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- मुनि महाराजने कहा-“ महानिशीथ सूत्रमें लिखा है कि, जो साधु विना प्रमाणके रजोहरण रखता है अथवा रखनेवाटेको सहायता देता है उसे प्रायश्चित्त आता है। वह पाठ इस तरह है
" जे भिक्खु अइरेग पमाण रयहरणं धरेइ धरतंवा साइजह ते सेवमाणे आवज्जइ मासियः परिहारहाणं उग्धाइयं ।” सो तुम अपने गुरुओंसे बत्तीस शास्त्रोंके मूलपाठमें रजोहरणका प्रमाण पूछ लो और फिर मिलालो । जिसका प्रमाण मिले वह सही और जिसका प्रमाग न मिले वह भगवानका साधु नहीं।"
इस बातका भी उसने नोट कर लिया और वह यह कह कर चला गया कि, इसका भी उत्तर मँगवाऊँगा; मगर आज तक कोई उत्तर नहीं मिला इससे स्पष्ट है कि, इंन हूँढियोंमें जरूर पोल ही भरी हुई है; क्योंकि यदि ऐसा न होता तो ढूंढियोंके वर्तमान पूज सोहनलालजी और मयारामजीसे पूछकर कन्हैयालाल जरूर उत्तर देता बस सिवाय हठके और कुछ नहीं है।
एक दिन कर्मचंद बंबने जोरमें आकर कहा कि-" प्रश्न व्याकरणके मूलपाठमें लिखा है कि जिनप्रतिमाकी पूजा करनेवाला मंद बुधिया है।"
महाराज श्रीवल्लभविजयजीने पूछा-" यदि ऐसा पाठ न निकले तो क्या करना ? "
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