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शहरोंके श्रावक मुनिराजोंके दर्शनार्थ आये थे। पूजा-प्रभावनादि धर्मकार्य अच्छे हुए। शहरमें धार्मिक उत्साह अच्छा बढ़ा हुमा है । x xxx
शहरमें उत्साह बढ़ने और धर्म तथा गुरुमहाराजकी महिमाका विस्तार होनेसे दुखी होकर दूँढियोंने छेड़ छाड़ प्रारंभ की। . एक दिन कन्हैयालाल बंब आकर पूछने लगा कि, “शास्त्रोंमें तो पानीकी एक बूंद भी रातमें रखना मना है और तुम घड़ोंके घड़े भरे पानी क्यों रखते हो ? " ,
मुनि श्रीवल्लभविजयजीने जवाब दिया कि,-" हम रातको पानी, उसमें कली चूना डालकर रखते हैं। इसमें चोरीकी कोई बात नहीं है। श्रीनिशीथसूत्रके चौथे उद्देशमें लिखा है कि जो साधु या साध्वी, लघुशंका या दीर्घशंका जाके शुचि नहीं करता है या शुचि न करनेवालेको मदद देता है उसे प्रायश्चित्त आता है । इस लिए हम पानी रखते हैं। मगर तुम्हारे गुरु ढूंढिये साधु नहीं रखते हैं वे क्या करते हैं ? "
कन्हैयालालने पूछा:-" जरूरत पड़ने पर पानीका रखना क्या किसी सूत्रके मूलपाठमें लिखा है ?"
वल्लभविजयजीने कहाः- हाँ, बृहत्कल्पके पाँचवें उद्देशमें यह बात लिखी है।"
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