SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 521
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६८ आदर्श जीवन । बैठ कर वीतरागदेव के समाधि मार्ग का उपदेश करें और श्रोता गण उस उपदेशामृत से अपने आत्मा में शान्त भाव को प्राप्त करें इसी में सार है। सांसारिक कार्यों में व्यग्रता को प्राप्त हुए मनुष्य कुछ समय शान्ति प्राप्त करने के लिये ही साधु मुनिराजों के पास उपदेशामृत का पान करने के वास्ते आते हैं, न कि. इधर उधर की व्यर्थ बातों के सुनने और अपनी व्यग्रता को बढ़ाने के लिये उनका आगमन होता है। पाट पर बैठ कर व्याख्यान वाँचने वाले को किसी राज्य की तर्फ से किसी तरह की अमलदारी नहीं मिली हुई । उसको तो इस स्थान से मात्र लघुता रूप सद्गुण की अनुपम शिक्षा ग्रहण करने की है, इसलिये पाट पर बैठने से पहले, मैं कौन हूँ, किस के पाट पर बैठता हूँ और आगे को मेरे लिये क्या २ कर्त्तव्य है इत्यादि बातों का अवश्य विचार कर लेना चाहिये। तथा व्याख्यान दाता को इतना और भी ख्याल रखना चाहिये कि व्याख्यान में इस प्रकार के विषय की चर्चा हो जिससे कि सुनने वालों को कुछ न कुछ सद्धोध और शान्त रस की प्राप्ति हो। साधु पुरुषों के कथन और आचरण का उपयोग मात्र धर्माभिवृद्धि के लिये है। इसके विपरीत बन्धुओं के पारस्परिक क्लेश, और परस्पर की ईर्षा आदि बीभत्स कार्यों के लिये साधु पुरुषों को अपने उच्चार और विचार का कदापि उपयोग नहीं करना चाहिये । इस वास्ते महात्मा पुरुष अलग रहते हुए भी सब से मिले हुए और सब से मिलते हुए भी सब से अलग हैं। एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy