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आदर्श जीवन।
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असली स्वरूपको बिलकुल ही भूला हुआ था । देवपूजन, देव, गुरु एवं धर्म के यथार्थ स्वरूपसे वह बिलकुल ही वंचित था । परन्तु प्रातःस्मरणीय स्वर्गवासी जैनाचार्य श्रीमद्विजयानन्द सूरि उर्फ आत्मारामजी महाराजने स्वयं प्रबुद्ध हो कर जब उसे प्रबोधित किया तब वह-जैन समाज-समझा कि इससे प्रथम उसने जिस मार्गका अवलंबन किया हुआ था वह वस्तुतः उन्मार्ग था । उसके लिये प्रशस्त मार्ग वही है जिसका निर्देश उक्त महापुरुष कर रहे हैं । अतः उसने अपने उसी प्राचीन प्रशस्त मार्गका सतत अनुसरण किया। इसके प्रमाणमें पंजाबकी इस समय विद्यमान सच्ची धार्मिक जागृति प्रस्तुत है । उसमें इस वक्त देवविमानोंके सदृश देवमंदिर भी विद्यमान हैं, सच्चे साधु मुनिराज भी वहाँ न्यूनाधिक संख्यामें मौजूद हैं और संख्याके अनुरूप सद्बोध प्राप्त श्रावकवर्ग भी है।
तात्पर्य कि महापुरुषोंके उपदेशालम्बनसे मनुष्यके आत्मविकासमें बड़ी भारी इमदाद मिलती है । तदनुसार उक्त स्वर्गवासी गुरु महाराजके बाद पंजाबको यदि किसी ने अपने विशिष्ट उपकारसे आभारी किया हो तो वे मुनि महाराज श्रीवल्लभाविजयजी हैं। अनुमान १३ वर्ष के बाद आपश्रीका जबसे फिर पंजाबमें पधारना हुआ तबसे पंजाबके जैन समाजमें कुछ अपूर्व ही जागृति पैदा हो रही है। उसने अपनी सामाजिक त्रुटियोंको बहुत अंशोंमें पूर्ण किया, तथा
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