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________________ ४३२ आदर्श जीवन। . ... लाहोरे शहर में प्रतिष्ठा तथा आचार्य पदवी का समारोह ! नमो विश्वप्रधानाय, विश्वविश्रुतकीर्तये । सर्वसम्पन्निधानाय, वर्द्धमानाय वेधसे ॥ १ ॥ प्रारम्भिक निवेदन। पंजाबकी विख्यात राजधानी इस लाहोर शहरमें जैनधर्मके प्राचीन जीर्णोद्धृत देवमंदिरकी प्रतिष्ठा और मुनि श्री १०८ वल्लभविजयजी महाराजको बड़े समारोहसे आचार्य पद पर प्रतिष्ठित करना यह दो काम इतने महत्त्वके हुए हैं कि वर्तमान जैन इतिहासमें इनका स्थान एक विशेष गौरवको लिए हुए होगा । इन दो शुभ कार्योंके निमित्त जैन जनताने जिस श्लाघनीय उत्साहका परिचय दिया है उसका जिकर तो इतिहासके पृष्टोंमें खास तार पर करने लायक. है । यह कहना कुछ अत्युक्ति न होगी कि आज चार सौ. वर्षके बाद इन दो शुभ कार्यों ( प्रतिष्ठा तथा आचार्य पदवी) की पुनरावृत्ति करते हुए पंजाबके और खास कर लाहौरके जैनसमाजने जो श्रेय प्राप्त किया है उसकी तुलना यदि असम्भव नहीं तो कठितर अवश्य है ! धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों ही दृष्टियों से ये बड़े महत्व के हैं । xxxx Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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