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________________ आदर्श जीवन । मेरी इस आज्ञाको मान, हाथ जोड स्वीकार कर सं० १९८० कार्तिक शुदी २ (गुजराती) को पंजाबके होशियारपुरसे विहार कर मार्गमें प्रायः विशेष किसी भी स्थानपर न ठहर, निरंत लंबा विहार करते हुए, लगभग बारह सौं माइलकी (पैदल) मुसाफिरी कर करीब सात महीने में बंबई. पहुँचनेवाले हैं । यह काम कुछ कम हिम्मत का नहीं है । __इनके साथ यद्यपि इनके शिष्य मुनि प्रभाविजयजी, गुरुभक्ति की खातिर, होशियारपुरसे ही इनके साथ आये हैं तथापि, बंबई जैसे बड़े शहरमें चार साधु विशेष हो तो शासनकी शोभा के साथ ही कार्यसिद्धिमें भी विशेष मदद मिले, इस हेतुसे पंन्यास उमंगविजयजीको पत्र लिख उनके साथ बंबई जानेकी प्रेरणा एवं आज्ञा की। यद्यपि इनकी विशेष इच्छा न थी तथापि मेरी आज्ञा एवं शान्तमूर्ति१०८श्री हंसविजयजी महाराजकी प्रेरणा और तथा आज्ञाको मान, तथा पंन्यास ललितविजयजीके साथ पहलेसेही धार्मिक प्रेम होनेसे और दोनोंने पदवी साथही ली है, इस संबंधको विचार कर वे बंबई, अहमदाबादसे विहारकर अपने शिष्य मुनि चरणविजयजीके साथ आये हैं। इस प्रसंगपर स्वर्गवासी मुनि महाराज श्री माणिकविजयजीके शिष्य मुनि श्रीनरेन्द्रविजयजी और स्वर्गवासी मुनि महाराज दादा श्रीकेवलविजयजीके शिष्य मुनि श्रीअमरविजयजी अपने शिष्य मुनि कान्तविजयजीसहित साथमें पधारे हैं। यह खुशी की बात है । आशा है पंन्यास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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