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________________ आदर्श जीवन | खी० 0 sup ऐसे उच्च आत्माको सताया था । अस्तु । अब तू मुझसे क्या चाहता है ? " -" मैं सिर्फ इतना चाहता हूँ कि वह भाग न जाय ।" ही ० - " मैं उसे समझा दूँगा । मगर मैंने सुना है तू उसकी धर्मक्रियामें वाधा डालता है । वह गरम पानी पीना चाहता हैं;: तू गड़बड़ कर देता है । परिणाम में वह दिन दिन भर भूखा प्यासा रह जाता है । ऐसा अनुचित काम कर पाप न बाँध । भावीमें जो होनेवाला है वही होकर रहेगा । " २७ खीमचंदभाईने कहाः “ मैं छगनको आपके पास भेज: देता हूँ । आप जैसा उचित समझें करें । " Jain Education International जैन और जैनेतर सभी लोगों में यह बात प्रसिद्ध थी कि, हीराचंदभाई सच्चे सलाहकार हैं । जो उनके पास सलाह लेने जाता था वे उसे उचित ही सलाह देते थे । उनकी सलाहके अनुसार काम करनेवालोंको प्रायः सफलता ही मिलती थी । यदि कोई अनुचित बात उनके सामने करता और सलाह चाहता तो वे बड़े नाराज़ होते और उस मनुष्यको फटकार देते । . आप हीराचंदभाई के पास गये । इन्होंने प्यारसे सिर पर हाथ फेर कर कहा : " छगन ! तू धर्म करने निकला हैं फिर इस तरह लोगोंकी आत्माको दुःख पहुँचाना तुझे शोभा नहीं देता । घरको उजाड़ना क्या तेरे लिए उचित है ? तू तो साधु For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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