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________________ आदर्श जीवन। .. तेजो द्वेषी लोगोंने जब सादड़ीके श्रावकोंको भड़का दिया तब उनके उत्साह ढीले पड़ गये । वे कार्यमें टालमटोल करने लगे। आपने सोचा इस समाजका भविष्य अभी अन्धकार पूर्ण है, अभी इस समाजके भाग्यमें उन्नत,-ज्ञान और धर्ममें उन्नत,-होना नहीं बदा है, इसी लिए इसने इतना प्रयत्न करके काम छोड़ दिया है । इनकी तो ऐसी हालत हो गई है तकदीर पर उस मुसाफिर बेकसके रोइए; जो थक कर बैठा है मंजिले मकसूदके सामने । आप सादड़ीसे विहार कर शिवगंज पधारे । मुहूर्त आ जाने और समस्त जानेवालोंकी तैयारी पूरी न होनसे, मुहूर्त पर संघका प्रस्थान कर चार दिनतक संघवी सहित आप शिवगंजके बाहर विराजे । जिस दिन संघवी बाहर जाकर ठहरे उसी दिन अर्थात् फाल्गुन सुदि ३ को उनको रंगूनसे तार मिला कि, उन्हें व्यापारमें बहुत अच्छा नफा हुआ है। उन्होंने आपसे अर्ज की-- 'गुरुदयाल ! यह आपही की कृपाका फल है । मैं इन सभी रुपयोंको धर्मकार्यहीमें खर्च देना चाहता हूँ।" _ आपने फर्मायाः-" सुश्रावक धर्मकी जड़ सदा हरी है। इस क्षेत्रमें जो जितना बोयगा उससे चौगुना उसे मिलेगा।" फाल्गुन सुदी छठके रोज शेठ गोमराजजीको शिवगंजमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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