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________________ आदर्श जीवन । सामने बैठ गये और हाथ जोड़कर बोलेः " महाराज साहब मैं केसरियाजीका संघ निकालना चाहता हूँ; आप दयाकर सपरिवार संघ में पधारनेकी कृपा करें । " ३६४ आपने फ़र्मायाः – “ तीर्थ यात्रा करना बहुत ही अच्छा काम है; इससे मन ज्यादा पवित्र होता है; अशुभ आस्रव रुकते हैं; निर्जरा भी होती है जिससे मोक्षका मार्ग बहुत सरल हो जाता है; तो भी मैं इस समय गोडवाड़ से बाहिर नहीं जा सकता । गोडवाड़ में विद्याप्रचार करनेका कार्य मेरे हाथमें है, गोडवाड़ में व्यवस्थित रूपसे जबतक विद्या प्रचारका कार्य प्रारंभ न हो जाय तबतक इस प्रान्तको छोड़नेकी मेरी इच्छा नहीं है । भविष्य में तो ज्ञानी महाराजने जो देखा होगा वहीं होगा । " सेठने अत्यंत आग्रहके साथ प्रार्थना की और कहाः " आप कृपा कर अवश्य पधारें । मैं इस काममें यथासाध्य मदद करूँगा । १०००० दस हजार रुपये इसके फंडमें दूँगा और दूसरोंसे भी अच्छी मदद कराऊँगा । " आप बोले:-- “ इसका अर्थ क्या यह नहीं होता कि, तुम दस हजार रुपये इस फंडमें मुझे लेजानेकी फीस देना चाहते हो । ऐसी फीस लेकर मैं कहीं नहीं जाऊँगा । " सेठ बड़े चक्कर में पड़े । उनका चहरा उदास हो गया । वे करुण कण्ठमें बोले:-- “ गुरुदेव । हम लोग ऐसे अर्थ निकालना कुछ नहीं जानते; अगर भूल हुई हो तो क्षमा करें। " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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