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________________ आदर्श जीवन। mmmmmmmmmmma यद्यपि आप जानते थे कि आत्माभिमानी उच्च कुलीन गरीब इनकी मिलमें जाकर मजूरी करना हरगिज पसंद न करेंगे; मगर विशेष लाभ न देख आप चुप रहे । यह काम योंहीं रह गया । महात्माकी वाणी पर किसीने ध्यान नहीं दिया । समय आया । संवत्सरीके पारणेवाले दिन महात्माकी वाणी सच्ची हुई। बाजार बदल गया और अनेक लखपतियोंकी गाड़ियाँ तेजीके साथ दरिद्रताके गड्डेमें गिरती हुई दिखाई दीं। वे पछताये मगर तब क्या हो सकता था ? ___गया वक्त फिर हाथ आता नहीं।" तपस्वी गुण विजयजी महाराजने पर्युषण पर्वमें १५ उपवासकी तपस्या की थी। लोगोंके हृदय भक्ति भावसे १-तपस्वी गुणविजयजी सद्गत श्रीजयविजयजी महाराज-जो स्वर्गीय १००८ श्री विजयानंद सूरि ( आत्मारामजी ) महाराजके शिष्य थे-के शिष्य हैं । आपमें तपस्याका गुण अलौकिक है। बड़ी बड़ी तपस्याओंमें भी ये साधुकी सारी क्रियाओंमें सावधान रहते हैं । दिनभर जाप करते रहते हैं और रातमें भी प्रायः दो दो बजे उठकर जाप करने लगते हैं और सवरे तक जाप करते ही रहते हैं । उपवासका पारणा करनेके लिए अभिग्रह पूर्वक आहार पानी भी अपने आपही ले आते हैं । अहमदाबादके चौमासेहीसे ये हमारे चरित्रनायकके साथ ही रहते हैं । बाली, खुडाला, बीकानेर और अंबाला शहर इतने चौमासोंमें इन्होंने नवकारकी तपस्या की है । नवकारकी तपस्यामें जिस पदके जितने अक्षर होते हैं उस पदके उतने ही उपवास किये जाते हैं। बालीमें अन्तिम दो पदोंके सत्रह उपवास और दो स्थानोंमें अन्तिम तीन पदोंके २५ उपवास एक साथ ही करते रहे थे। अर्थात् पहले पदके सात उपवास करके एक दिन पारणा-भोजन-किया। फिर दूसरे पदके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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