SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०८ आदर्श जीवन । पड़ती थीं । इस लिए जहाँ एक तरफ बहुतसे धनी बनते जा रहे थे वहीं दूसरी तरफ बहुतसे गरीब बनते जा रहे थे। अहमदाबादके समान व्यापार प्रधान शहरमें भी ऐसे आदमियोंकी कमी नहीं थी।कई हमारे चरित्रनायकके पास आते थे और अपनी दुःख कथा सुनाते थे । मगर अच्छे खानदानके होनेसे वे किसीके सामने हाथ पसारते शर्माते थे । उन लोगोंको रोजगारकी आवश्यकता थी। वे किसीसे भीख लेना नहीं चाहते थे कई तो ऐसे आते थे जो नौकरी करनेमें भी अपना अपमान समझते थे। इस कठिनाईको दूर करने और कुलीन कुटुंबके लोगोंका दुःख मिटानेके लिए आपने एक उद्योगशाला स्थापित करनेका उपदेश दिया। लोगोंका ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ। कई इस काममें यथासाध्य मदद देनेको भी तैयार हो गये। संसारमें धनिक लोगोंका प्रभाव बहुत होता है। साधारण लोग हरेक काम करनेके पहले धनिकोंका मुख देखते हैं और ये उसमें कुछ रकम देते हैं तभी वे लोग भी उस तरफ हाथ बढ़ाते हैं । वे हमेशा अपनेको निःसत्व समझते हैं और उनका विश्वास होता है कि धनिक लोगोंकी सहायताके बिना उनका काम जरासा भी न होगा। इसी भावनाने भारतका नाश किया है। पर्युषणोंके दिनोंमें, जब प्रायः सभी धनिक और साधारण स्थितिके लोग मौजूद थे, आपने फोया,-" भव्य श्रावको ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy