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________________ ३०२ आदर्श जीवन। जिन महात्माने पंजाबमें स्थानकवासियोंसे शास्त्रार्थ करके विजयका डंका बजाया था उनसे सभी इस बातकी आशा रखते थे कि, वे इन हेंडबिलोंका जवाब देते; मगर हमारे चरित्रनायकने कभी कलम न उठाई । आप जानते थे कि इस कागजी घोड़ोंकी दौड़का परिणाम सिवा शक्तिका अपव्ययके दूसरा कुछ होनेवाला नहीं है । एक दिन कई श्रावकोंने आपसे आग्रह पूर्वक इस बातको अपने हाथमें लेनेकी विनती की। उनको आपने जो उत्तर दिया था, उसे हम उपयोगी समझ कर यहाँ दे देते हैं:___“तुम सभी जानते हो कि, आजकल जमाना जुदा प्रकारका है। लोग एकता चाहते हैं। अपने हकोंके लिए प्रयत्न करते हैं; हिन्दु मुसलमान एक मत हो रहे हैं; अंग्रेज, पारसी, मुसलमान और हिन्दु शामिल होते हैं । इस तरह दुनिया आगे बढ़ती जा रही है। ऐसे समयमें भी, खेदके साथ कहना पड़ता है कि, कुछ विचित्र स्वभावके मनुष्य, उनमें भी खास कर जैन, दस कदम पीछे हटनेका प्रयत्न कर रहे हैं। __ सैकड़ों वर्षोंसे जो रीति चली आरही है और जिसके लिए एक पक्ष हो गया है उसके लिए मैं नहीं चाहता कि, आपसमें, विवाद कर प्रेमका-चाहे वह बाहरी ही क्यों न हो-नाश किया जाय । अपनी प्रचलित पद्धतिके अनुसार व्यवहार करके भी यदि सभी प्रेमके साथ रहेंगे तो कोई न कोई सार्वजनिक काम कर सकेंगे। इस हेतुहीसे वर्तमानमें मैं यथासाध्य ऐसा ही मार्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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