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________________ ૨૮૯ आदर्श जीवन। wrinaamaramanawarwwwmraana wwwwwwwr वदी ११ सं० १९७३ के दिन श्रीदादासाहबकी वाडीके मंदिरके चौकमें श्रीचतुर्विध संघके सामने हमारे चरित्रनायकने बहिन भाग्यवंतीको विधिविधान सहित दीक्षा दी । नाम चंपकश्रीजी रक्खा । देवश्रीजी महाराजकी शिष्याश्रीहेमश्रीजीकी वे शिष्या हुई। __ लाला शंकरलालजीकी दीक्षा ग्रहण करनेकी इच्छा थी परन्तु पैरमें कष्ट होनेके कारण विहार करनेमें असमर्थ होनेसे उन्होंने घरमें ही यथाशक्ति धर्माराधन करते हुए रहना स्थिर किया। आजतक वे अपनी वृत्तिमें दृढ हैं और पंजाबके जैन समुदायमें ब्रह्मचारीजीके उपनामसे सुप्रसिद्ध हैं। __ दीक्षालेनेवाली बहिनके पास उस समय जो जेवर था उसे बिकवाकर उसके पाँच सौ रुपये भिन्न भिन्न संस्थाओंको दानमें दे दिये गये । दीक्षामहोत्सवमें जो खर्च हुआ था, वह सभी लाला शंकरलालने किया था । वे घरके सुखी और परिवारवाले हैं। मातृभक्तिके कारण आप घरमें कुछ समय व्यतीत करते हैं शेष समय तीर्थयात्रा और साधुदर्शनमें बिताते हैं। धन्य है ऐसे दीक्षा दिलानेवालोंको ! ऐसी दीक्षाएँ और ऐसे महोत्सव अत्यधिक प्रशंसनीय हैं। दीक्षा देनेके बाद हमारे चरित्रनायकने एक घंटेतक व्याख्यान दिया और उसमें समझाया कि, चारित्र क्या है ? चारित्रसे क्या लाभ हैं ? उससे आत्मोन्नति कैसे होती है ? समाजका उद्धार कैसे होता है ? चारित्रलेनेवालेका क्या कर्तव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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