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________________ आदर्श-जीवन । कारण पूछा । उसने जवाब दिया कि, मेरे बहनोईके सेठका साला यहाँ पढ़ता है। उसकी सार सम्भाल लेने और उसे किसी चीजकी जरूरत हो तो लादेनेके लिए आया हूँ। फिर किसीने उससे कोई बात न पूछी । वह रोज एक चक्कर लगा जाता । आप भी उससे अच्छे हिलमिल गये। उस समय अहमदाबादके नगरसेठ श्रीयुत प्रेमाभाई थे। वे बड़े धर्मात्मा और भव्य जीव थे । आत्मारामजी महाराजके प्रति उनकी बड़ी भक्ति थी। वे अक्सर कहा करते थे कि, मैंने आजतक सच्चा गीतार्थ यदि कोई देखा है तो वे आत्मारामजी महाराज ही हैं । वे बहुत वृद्ध थे । पचीस पचास कदम भी कठिनतासे चल सकते थे; तो भी आत्मारामजी महाराजके व्याख्यानमें हमेशा आते थे और नौकर उन्हें छोटीसी डोलीमें बिठाकर ऊपर, जीना चढ़ा, रख देते थे । दुपहर में भी वे हमेशा आते और एक दो सामायिक कर जाते । सामायिकमें वे महाराज साहबके साथ तत्वचर्चा किया करते । एक दिन इन्होंने आपको देखा । महाराज साहबसे दर्याफ्त किया। महाराज साहबने सारी बातें कह सुनाई। दूसरे दिन सेठ व्याख्यान सुनकर घर जाने लगे तब उन्होंने श्रीयुत नानचंद केवल नामके श्रावकको कहा कि, आज दुपहरमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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