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________________ ૭૦ आदर्श जीवन । त्याग कर दिया है । जो रहे हैं वे भी संभवतः शीघ्र ही कर देंगे। x x x x आपके उपदेशसे करचलियेके लोगोंने फिरसे निश्चित कर लिया कि वाणियावाड़से प्रभुको यहाँ लाकर पधराना और जो आशातना होती है उसे बंद करना । आपने फर्माया कि, हम विधिसहित प्रार्थना करेंगे, यदि करचलियमें पधारनेकी अधिष्ठाताकी मरजी न होगी तो प्रतिमाजी स्थानसे उठेंगे ही नहीं। __ सं. १९७२ के वैशाख सुदी ६ का मुहूर्त स्थिर हुआ। xxxxx विधि सहित, धूमधामके साध प्रभुको रथमें विराजमान कर करचलियेमें ले आये । उस समय लोगोंमें अपूर्व उत्साह था । महाराजके प्रतापसे. श्रावक श्राविकाओंको पूजा, दर्शन, भक्ति आदिका लाभ मिलने लगा। इससे वहाँके श्रावक आपका अत्यंत उपकार मानने लगे। x x x x x x x x " करचलियेसे विहार कर आप बुहारी आदि स्थानोंके लोगोंको धर्मामृत पिलाते हुए सं. १९७२ का उन्तीसवाँ चौमासा करनेके लिए मूरत पधारे और गोपीपुरके उपाश्रयमें विराजे । उस समय आपके साथ (१) मुनि श्रीविमलविजयजी (२) मुनि श्रीविबुधविजयजी (३) मुनि श्रीतिलकविजयजी (४) मुनि श्रीविचक्षणविजयजी (५) मुनि श्रीमित्रविजयजी ऐसे पाँच साधु थे। चौमासा बड़े आनंदसे धर्मध्यानमें समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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