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________________ आदर्श जीवन । भी घर नहीं है; किन्तु वहाँ जिनालय है इससे और उसके वाणियावाड नाम से साबित होता है कि, वहाँ पहले बनियों की बहुत ज्यादा बस्ती होगी। मंदिर में मूलनायक श्रीसंभवनाथ स्वामीकी प्रतिमा है । उनकी पलांठी ( पाटली ) पर इस अभिप्रायका एक लेख है कि, यह प्रतिमा नगधराके श्रीसंघ ने ब्यारामें भराई थी । इससे भी साबित होता है कि नगधरा ( ? ) श्रावक थे वे वहाँ रहते थे और इसी लिए उस मुहल्लेका नाम वाणियावाड़ हुआ था । कालांतर से वहाँ धीरे धीर बस्ती कम होने लगी । वह यहाँ तक कम हुई कि पर बनियेका तो क्या किसी दूसरे उच्च वर्णवालेका घर भी नहीं रहा । थोड़े से घर वहाँ हलकी जातियोंके हैं । वे नहींके समान ही हैं । २६८ पास ही होनेसे कर चलियाका श्रीसंघ उपर्युक्त मंदिरकी सम्भाल रखता था । करचलियाके श्रीसंघको आसपासके श्राव कोंने कई बार कहा कि तुम प्रतिमाजीको अपने गाँवमें ले आओ; मगर कुछ प्रचलित दंतकथाओंके कारण उनकी हिम्मत चलती न थी । कहा जाता है कि, सं० १९२५ में एक श्री पूज्यजी आये थे उन्होंने करचलियाके एक मुखिया श्राव कको कहा कि, प्रतिमाजाको करचलियेमें ले चलो । वह राजी हो गया । इस लिए श्री पूज्यजीने प्रतिमाजीको गादीसे उठा कर म्यानेमें पधराया और म्याना करचलियाकी तरफ रवाना हुआ । वाणियावाड़से करचलिया आते मार्ग में एक छोटीसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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