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________________ आदर्श जीवन। २५७ अनेक मुनिगण विभूषित, मुनिगणसेवित चरणका मल श्रीमान् श्रीमुनि वल्लभविजयजी महाराज योग्य सेवक लब्धिकी वंदना मंजूर हो । बाद प्रयोजन पत्र लिखनेका आपकी सुखसाताके समाचार विदित होवें यही है; क्योंकि विना इस पत्र लिखनके आपका समाचार दुर्लभ समझा गया सो यकीन है पूरण होगा। सुखसाताके समाचारातिरिक्त धर्मोन्नति किस प्रकार हो रही है यह भी शिष्यद्वारा लिखानेकी कृपा करनी। जैनमें वल्लभविजयजी महाराज और जैन प्रगति शीर्षक लेखके पढ़नेसे मालूम हुआ कि, गुरु महाराजकी यादगारामें बंबईमें भी कोई निशानी जरूर होगी; क्यों न हो आप जैसे सत् गुरु चरण सर्वस्व जावें और उन परमोपकारीका नाम कयामत तक न भुलाने लायक सहस्र नवीनोंको फलदायक न हो तो फिर किसके जानेसे होगा ? यदि हमारे संप्रदायिक इस संप्रदायके नेतामें किस्की परम भक्ति है ऐसा खयाल करें तो आप पर प्राण न्योछावरकरके कार्यको भी अकिंचित्कर समझने लगें यह मेरा पूर्ण विश्वास है। समाचार देते रहना विहारके सबबसे नाहीं मैं कोई पत्र लिख सका और नाहीं आपका चलो इतना काल सुषुप्तिमें ही समझ लूँगा अब जागृतिका समय है। द० ल० वि०" इस तरह सं० १९७० का आपका सत्ताईसवाँ चौमासा बंबईमें हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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