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________________ आदर्श जीवन । स्वर्गवासी शांतमूर्त्ति तपस्वीजी महाराज श्री १०८ श्रीथोभणविजयजी महाराजके शिष्य श्री १०८ श्रीगुणविजयजी आ मिले । संखेश्वर पार्श्वनाथ से रवाना होकर संघ दसाडा होता हुआ माँडल पहुँचा | मॉडलमें संघके आने से और उसमें आपके समान उपदेशामृतकी वर्षा करनेवाले महात्मा के विराजनेसे संघका हृदय उल्लास समुद्रमें झकोरे खाने लगा । उसने यथोचित संघका आदर-आतिथ्य किया और संघपति सेठ मोतीलाल मूलजीको एक मानपत्र दिया । जबतक संघ रहा आप वहाँ हमेशा व्याख्यान देते रहे और व्याख्यानमें हजारों जैन अजैन आते रहे । यहाँ आपके साथमें पंन्यासजी महाराज श्रीसुंदरविजयजी के शिष्य श्रीजिन विजयजी आ मिले । इस तरह आपके साथ सहत्र भेदी संयमके समान १७ संयमी - साधुसंमिलित हुए। संघ मॉडलसे रवाना होकर ऊपरियाला तीर्थ, पाटडी, लखतर, वढवाण और लीमड़ी होता हुआ चूडाराणपुर पहुँचा । वहाँ पंजाबका संघ भी पहुँच गया । पंजाबका संघ श्री आबू, भोयणी आदि तीर्थोंकी यात्रा करता हुआ खास कर हमारे चरित्रनायकके दर्शनार्थ चूडाराणपुरमें पहुँचा था और सिद्धाचलजी तक राधनपुरके संघके साथ ही रहा । बड़ी दर्बारको जब संघके आनेके समाचार मिले तब उन्होंने कहला भेजा कि मुझे दर्शन दिये विना संघ रवाना न हो । मैं सवेरे ही संघका और संघके साथ आये हुए मुनि २१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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