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________________ आदर्श जीवन। २०५ स्वर्गवासका दिन होनेसे आप श्रीसंघने महोत्सव प्रारंभ किया है । इसीके दर्मियानमें यह शुभ कार्य हुआ है, इसलिए तुम्हें अपार आनंद होगा और आजका दिन तुम्हारे लिए सुनहरी अक्षरों में लिखने योग्य साबित होगा । अस्तु, श्रीवीर संवत् २४३५ श्रीआत्म संवत १४ विक्रम संवत (गुजराती) १९६५ जेठ सुदी ८ गुरुवार ।" यह फैसला गुजराती भाषामें लिखा गया है और इसके अंतमें हमारे चरित्र नायककी सही है । ___ यह फैसला ऐसा हुआ कि इससे किसीको किसी तरहकी शिकायत न रही । बड़े आनंदके साथ इसका स्वागत किया गया और सभी पक्षवालोंने परस्परमें गले मिलकर इसको आचरणीय स्वरूप दे दिया। स्वर्गीय आत्मारामजी महाराजकी वह अवसान तिथि थी इस लिए उत्सव हो रहा था। इस फैसलेसे उत्सवमें दुगनी शोभा बढ़ गई। उस दिन जब आप शामको प्रतिक्रमण कर चुके तब श्रीसंघने वहीं चौमासा करनेकी अर्ज की। आपने पालीतानेमें चौमासा करनेका इरादा बताया । श्रीसंघ वहीं डटकरके बैठ गया कि जब तक आप चौमासा यहीं करनेकी स्वीकारता न देंगे हम यहाँ से न उठेंगे... आये हैं तेरे दरपे तो कुछ करके हटेंगे । या वस्लही हो जायगी या मरके हटेंगे । आप इन्कार करते थे । श्रावक हाँ कहलानेके लिए डटे हुए थे। इसी 'हाँ' 'ना' में रात आधीसे भी ज्यादा बीत गई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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