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________________ आदर्श जीवन । नजीके लंका जानेका जो वर्णन किया है वह आँखोंके सामने आ खड़ा होता है । वे लिखते हैंचौपाई-जिमि अमोघ रघुपतिके बाना, ताही भाँति चला हनुमाना । जलनिधि रघुपति दूत विचारी, कह मैनाक होउ श्रमहारी ।। सोरठा-सिंधुवचन सुनि कान, तुरत उठेउ मैनाक तब । कपि कह कीन्ह प्रणाम, बार बार कर जोरिके ॥ दोहा—हनुमान तेहि परसि करि, पुनि तेहिं कीन्ह प्रणाम । रामकाज कीने बिना, मोहि कहाँ विश्राम ॥ अमृतसर निवासी लाला हरिचंदजी दुग्गड अभी ता०२२३-२५ को हमें बंबईमें मिले थे। वे कहते थे कि, "जब महाराज साहब अमृतसरमें पहुंचे तब उनके पैर सूज रहे थे। उनके पैरों पर हाथ लगानेसे उन्हें कष्ट होता था। हम लोगोंने अर्ज की-"कृपालो! आपके और सोहनविजयजी महाराजके भी पैर मूज रहे हैं। ऐसी दशामें आप आगे बढ़ेंगे तो ज्यादा तकलीफ होगी । आप पाँच सात दिन यहाँ आराम कीजिए। फिर आगे पधारिए । गुजराँवालेमें भी पंच मुकरेंर करके मामला निपटानेकी बात चल रही है।" __ आपने फर्माया:-"श्रावकजी ! पहले धर्म है, शरीर नहीं । धर्मकी अवहेलनाके सामने शारीरिक कष्ट तुच्छ हैं। मैं गुजराँवाला पहुँचकर ही दम लूँगा । बीचहीमें फैसला हो गया तो बहुत अच्छी बात है।" की बात शायरी कष्ट तुच्छ हैं। गया तो पहुचकर ही दम लगा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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