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________________ आदर्श जीवन । १७५ भविजयजी आदि जोग, सुखसाता अनुवंदना वंदना बाँचनाजी लखवानुं के ( लिखनेका कारण यह है कि ) जगन्नाथ मारफत पत्र दिया था । उत्तर आया नहीं. खैर. विशेष लखवानुंके आ पत्र वांचते सार ( यह पत्र पढ़ते ही) विहार अत्र गुजराँवाला तरफ़ कर देनाजी। कारण सब जगन्नाथसे विदित हो गया होगा, तो बी इसारा मात्र जणाया जाता है कि आ वखत अत्रेना ढूंढियाओने तमाम सारा शहेरने ( को ) अपने पक्षमा ( में ) कर लिया है और जैनतत्वादश तथा अज्ञानतिमिरभास्कर इन दोनों ग्रंथको रद करनेकी बड़ी कोशिश हो रही है । यद्यपि बड़े महाराजने जो जो लिखा है सो सत्य है तथा प्रमाण सहित है और पुस्तकों भी मौजूद है तथापि इनोंका पक्ष जादा है । सही सही सिद्ध करना ब्राह्मण लोकोरोला पाके ( शोर मचाके ) करवा देवे तेम जणातुं नथी ( ऐसा मालूम नहीं होता ) माटे (इसलिए ) आ वखत तमारु ( तुम्हारा ) जरूर काम छे. ( है ) तुम्हारी फुरती बहोत है । यकीन है तुम्हारा आनेपर अच्छा फतेह होगा । ओ ( और ) विचार लांबो छोड़ी ( लंबा विचार छोड़ कर ) अत्रेथी आवेला श्रावको साथ जरूर विहार करना जी । यद्यपि गरमी है, दूरका मामला है। परन्तु आ वखत एवोज छे (ऐसा ही है) जो कि प्राणतो अर्पण थई जाय ( हो जायँ) परन्तु गुरुका वाक्योंने धक्को न लागे, इस लिए जारमारके दबके लिखा जाता है। बस इतना मात्रसे समझ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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