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________________ आदर्श जीवन। १२९ (४) विवाहके समय जैसे श्रीजिनमांदरजीमें रुपये चढ़ाया करते हैं वैसे ही 'श्रीआत्मानंद जैनपाठशाला पंजाब' के नाम भी चढ़ाया करें। क्योंकि प्रायः पंजाब देशमें सब स्थानों पर श्रीजिनमंदिर बन गये हैं, बन रहे हैं और सब तरहके खर्चका काम चल जाता है, इसलिए ज्ञानके उद्धारका ध्यान करना भी श्रीसंघका उचित आचरण है। (५) पर्युषणोंके दिनोंमें कल्पसूत्रकी बोलियाँ और ज्ञान पंचमी वगैरहका जो कुछ ज्ञानसंबंधी चढ़ावा होता है, वह 'श्रीआत्मानंद जैनपाठशाला पंजाब' के फंडमें शामिल होना चाहिए। (६) चातुर्मास आदिमें साधु मुनिराजोंके दर्शनार्थ जो श्रावक आते हैं वे जैसे श्रीजिनमंदिरमें चढ़ाते हैं वैसे ही उस समय 'श्रीआत्मानंद जैनपाठशाला पंजाब' के नाम भी,न्यूनाधिक जैसा बन सके, कुछ चढ़ावा चढ़ाया करें ।। उस साल यानी सं० १९५८ का पन्द्रहवाँ चौमासा आपने अमृतसरहीमें किया था। यहींसे आपने 'आत्मानंद जैनपत्रिकामें श्रीगौतमकुलकका हिन्दी रूपान्तर निकलवाना प्रारंभ किया। इसी चौमासेमें कार्तिक सुदी १४ के दिन वृद्ध महात्मा मुनि श्री १०८ कुशलविजयजी (बाबाजी) महाराजका देवलोक हो गया । इनमें वैयावृत्त्यका जो गुण था वह श्रीआत्मारामजी महाराजके संघाड़ेके साधुओंमें तो क्या अन्य भी किसी संघाड़ेके साधुओंमें नहीं है। - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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