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आदर्श जीवन ।
आपने आचार्यश्रीकी इच्छानुसार यहाँ जैनमतक्ष तैयार किया । कई साधुओंको भी आप यहाँ पढ़ाते रहे। इस तरह सं० १९५० का सातवाँ चौमासा आपका जंडियाला गुरुमें हुआ।
+ + + जंडियालागुरुसे आचायश्री, घुटनोंमें दर्द हो जानेसे, चौमासा समाप्त होजानेपर भी विहार न कर सके। कुछ समयतक वहीं विराजे । जिन जिन मुनिराजोंका उस समय पंजाबके अन्यान्य शहरोंमें चौमासा था वे चौमासा समाप्त कर आचार्यश्रीके चरणोंमें आ उपस्थित हुए। मुनिराजोंमेंसे मुख्य ये थे,-१०८ श्रीकमलविजयजी महाराज, १०८ श्रीउद्योतविजयजी महाराज, १०८ श्री वीरविजयजी महाराज, १०८ श्रीकान्तिविजयजी महाराज आदि। ___ मुनिराजोंने आचार्यश्रीसे नवीन साधुओंकी योगोद्वहन क्रिया करानेके लिए प्रार्थना की । आचार्यश्रीने अनुकूल क्षेत्र
और समय देख इस प्रार्थनाको स्वीकार किया और १०८ श्रीउद्योतविजयजी महाराजके शिष्य श्रीकपूरविजय, १०८ श्रीवीरविजयजी महाराजके शिष्य श्रीदानविजयजी, १०८ श्रीकांतिविजयजी महाराजके शिष्य श्रीचतुरविजयजी तथा श्रीलाभविजयजी, १०८ श्रीहंसविजयजी महाराजके शिष्य श्रीतीर्थविजयजी, और हमारे चरित्रनायकके शिष्य श्रीविवेक
१ श्रीतीर्थविजयजी महाराजका, योगोद्वहनकी क्रिया समाप्त होनेके पहले ही, स्वर्गवास हो गया था।
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