________________
( ८८ ) की, जिसे सुन कर सारी सभा की आँखों से अश्रुधारा बह चली। आचार्य महाराज ने पंजाब को हृदयस्थ रखने
और शीघ्र वापिस आने के लिये योग्य उत्तर दिया। . देहली से आपने गुजरात की ओर प्रस्थान किया। अनेक ग्रामों में विचरते हुये आप अलवर पधारे। वहां भी एक भव्य जिन मंदिर में माघ सुदि ५ को प्रतिष्ठा कराई गई और श्री पार्श्वनाथ भगवान् गद्दी पर विराजमान हुये। पंजाब और मारवाड़ के लोगों की आपमें अनूठी श्रद्धा और भक्ति है। उसके कारण उनका मन सदा आपके दर्शनों के लिये लालायित रहता है। अभी आपको पंजाब छोड़े थोड़े ही दिन हुये थे और मारवाड़ में आपका विहार आरंभ होने वाला था। दोनों प्रदेशों के भक्तजन आपके दर्शनार्थ अलवर पहुँचे और मारवाड़ी संघ ने आपसे मारवाड़ में पधारने को विनती की। । .. आपने जयपुर, अजमेर, ब्यावर होकर बीजोबा को तरफ विहार किया। आपके पूर्ण भक्त पंन्यासजी महाराज श्री ललितविजयजी महाराज श्रीवरकाणा-बीजोवा से दाँता ग्राम तक आपको लिवाने आये। बिजोवा में पधारने के बाद आपको घाणेराव वाले श्रीयुत् जसराजजो सिंघी की बीमारी का समाचार मिला। वे वरकाणा में बीमार थे। वरकाणा वहां से १ मील के अन्तर पर है। श्रीयुत् जसराजजी सिंधी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org