________________
( ६९ ) लेखन और व्याख्यान आपकी लेखन शैली व व्याख्यान शैली बड़ी उत्तम और सारगर्भित हुआ करती है। इसके उदाहरण पहले कई बार आ चुके हैं। आपने जहां जहां व्याख्यान दिये, जनता ने मुक्तकण्ठ से आपकी भूरि भूरि प्रशंसा की। जब आप व्याख्यान की छटा बाँचते हैं, तब श्रोता लोग मन्त्र मुग्ध को तरह झूमने लग जाते हैं। क्या जैन और क्या अजैन ! आपको वाणी जिन्होंने सुन ली, आप ही के हो जाते हैं।
एक दिन का जिक्र है कि आप पपनखा (पंजाब) में विराजमान थे। वहाँ की पाठशाला के एक मास्टर का यह स्वभाव था कि उस गाँव में कोई भी साधु, पंडित क्यों न आवे, वह अपनी शंकाएँ सामने रख ही दिया करता था। आज दिन तक किसी ने उनके मन का समाधान नहीं किया था। आपके पास भी वे आये। एक घण्टे तक आपसे वार्तालाप करके संतुष्ट हुए। अन्त में हाथ जोड़ कर मास्टरजी ने कहा:... "कृपानाथ ! आज मैं शङ्काओं के भूत से रिहा हुआ हूँ, मुझे आज शान्ति मिली है।"
रामनगर में आपके व्याख्यानों की धूम सी मच गई थी। आपके व्याख्यान से प्रभावान्वित होकर एक सिख
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org