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( ५६ ) "गुरुदेव ! अब 'ना' मत कहें। अब तो हमारी आकांक्षा पूरी होने दें।" आप कुछ समय तक ती मौन रहे, फिर बोले-"बड़ों को तथा श्री संघ की आज्ञा को इनकार कैसे करूं? फिर भी बड़ों के साथ मेरा व्यवहार वही रहेगा जो प्रथम था ।" आपका उत्तर सुनकर सारा संघ आल्हादित हो उठा। ... बात यह थी कि श्री संघ ने लाहौर में एक प्रतिष्ठा का आयोजन भी कर रखा था। उसी अवसर पर आपको 'आचार्य पद' देने का भी उपक्रम था। दोनों वृद्ध मुनिराजों के तार मिल जाने से काम सहज हो गया। प्रतिष्ठा के दिन ही आचार्य-पद-प्रदान का दिन था। छोटे और बड़े सभी उत्साहित थे। आनन्द का सागर उमड़ रहा था मार्गशीर्ष शुक्ला ५ सोमवार, संवत् १९८१ के दिन आपको प्रातःकाल सकल श्री संघ पंजाब ने एक बड़ा ही सुन्दर मान-पत्र भेंट किया, जिसमें आपको जैन समाज सम्बन्धी सेवाओं का पूर्ण विवेचन किया गया था। ____ उस दिन आचार्य पद और प्रतिष्ठा की सारी शास्त्रोक्त क्रियाएँ हुई। आपका आचार्य पदासीन करके पंजाब श्री संघ ने मूर्ति-प्रतिष्ठा करवाई और अपने को कृत-कृत्य माना। इसी प्रसंग पर आपके परम भक्त शिष्य रत्न पंन्यासजी श्री सोहनविजयजी महाराज को आपने
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